कैसे होगी दिल्ली-एनसीआर की दिवाली ग्रीन, पटाखे तो है ही नहीं

विप्लव अवस्थीः देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र यानि एनसीआर में पटाखों पर आये सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखों के शौकीन लोग निराश है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली एनसीआर में पटाखे मिल ही नहीं रहे।

बताया जा रहा है कि सीमित संख्या में पटाखा विक्रेताओं को लाइसेंस दिए गए है। जिनके पास लाइसेंस है, उनके पास दिल्ली एनसीआर में सप्लाई करने के लिए ग्रीन पटाखे हैं नहीं ऐसे में दिल्ली एनसीआर की दीपावली इस बार बगैर पटाखों के होगी।

सुप्रीम अपने आदेश में कहा कि देश के अन्य भागों को छोड़कर दिल्ली और एनसीआर में केवल ग्रीन पटाखों की ब्रिकी की जाएगी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये नहीं साफ लिखा कि दिल्ली एनसीआर में केवल ग्रीन पटाखे की जलाये जाऐं. साथ ही सवाल ये भी खड़ा होता है कि एनसीआर के बाहर के जिलों से अगर पटाखे दूसरी जगह से लाकर दिल्ली-एनसीआर में छुड़ाये जाऐं तो उसे रोकने का तरीका क्या होगा? और उस पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही कैसे होगी?

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सुप्रीम कोर्ट का पटाखा पर आदेश

दिवाली पर सिर्फ़ दो घंटे के लिए रात 8 से 10 बजे तक पटाखे जलाए जा सकेंगे. इसके साथ कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि त्योहारों में कम प्रदूषण वाले ‘ग्रीन पटाखे’ ही जलाए और बेचे जाने चाहिए. जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि प्रतिबंधित पटाखे बेचे जाते हैं तो संबंधित इलाक़े के थाना प्रभारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा और उन पर अवमानना का मामला चलेगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे यानी कम प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को ही इस्तेमाल किया जा सकेगा. दिवाली या ऐसे किसी दूसरे त्योहार में रात 8 से 10 बजे के बीच ये पटाखे जलाए जा सकेंगे. क्रिसमस और नए साल के मौकों पर ये समय एक घंटे का है. ये समय रात के 11.45 से लेकर 12.45 तक होगा.”

दिल्ली-एनसीआर में केवल ग्रीन पटाखे बिकेंगे

ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं, जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है. राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI नीरी) सीएसआईआऱ  का एक उपक्रम है. यह नागपुर में स्थित है. यह पर्यावरण विज्ञान एवं इंजीनियरी से सम्बन्धित अनुसंधान एवं व्यावहारिक सुझाव देता है.

लेकिन खबरों के मुताबिक नीरी को केवल दिल्ली-एनसीआर में ग्रीन पटाखों की आपूर्ति करने में कम से कम तीन महीने का समय लग जाऐगा. एक आंकड़े के मुताबिक राजधानी दिल्ली में केवल 50 लाख किलो पटाखा की खपत हर साल की है. यानि कि नीरी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब दो हफ्ते में केवल दिल्ली भर के लिए 50 लाख किलो पटाखा बनाना होगा जो कि फिलहाल संभव नहीं दिखता है. जिसका साफ मतलब है कि आसपास के राज्यों से भी पटाखों को गलत तरीके से भेजने का पूरा प्रयास किया जाऐगा.

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ग्रीन पटाखे भी होते हैं हानिकारक

ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है. सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं. सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फ़र गैस निकलती है. ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं. नीरी ने कुछ ऐसे फ़ॉर्मूले बनाए हैं जो हानिकारक गैस कम पैदा करेंगे. नीरी का दावा है कि उनके संस्थान ने ऐसे फॉर्मूले तैयार किए हैं जिसके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैस उसमें घुल जाएगी.

सभी राज्यों का पक्ष सुने बगैर, थानेदारों पर अवमानना की तलवार क्यों?
फैसले में यह कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने की जवाबदेही स्थानीय थानेदार या एसएचओ पर होगी. पिछले तीन सालों से सुनवाई के बावजूद सभी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित पक्ष नहीं रखा तो फिर पुलिस द्वारा आदेश का क्रियान्वयन कैसे होगा? गली-मोहल्लों में बच्चों द्वारा पटाखे फोड़ने पर थानेदार द्वारा किस कानून के तहत कार्रवाई और गिरफ्तारी होगी? आदेश लागू नहीं होने पर क्या देशभर के थानेदारों के खिलाफ अदालती अवमानना का मामला चलेगा?

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कितना बड़ा है पटाखों का कारोबार

पूरी दुनिया में पटाखों का सबसे बड़ा उत्पादक चीन है. दूसरे नंबर पर भारत है. भारत में पटाखों का व्यापार 2600 करोड़ रुपये से ज़्यादा का है. भारत में तमिलनाडु के सिवाकाशी को पटाखा उत्पादन का गढ़ माना जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल हादसों की वजह से इस धंधे में काम करने वाले कम से कम 20-25 लोगों की मौत हो जाती है. इंडिया स्पेंड के मुताबिक़ एक फुलझड़ी जलने से होने वाला नुकसान 74 सिगरेट पीने के बराबर होता है. स्नैक को जलाने से 462 सिगरेट पीने जितना असर होता है. वहीं अनार को जलाने से 34 सिगरेट पीने जितना फर्क पड़ता है.

सवाल यह है कि इस फैसले की बजाय पुराने कानूनों पर अमल का सिस्टम क्यों नहीं दुरुस्त किया जाता
वर्तमान नियमों के अनुसार रात दस बजे के बाद तेज ध्वनि में संगीत के साथ पटाखों का भी इस्तेमाल नहीं हो सकता. पटाखों की बिक्री सिर्फ लाइसेंसी दुकानदारों द्वारा की जा सकती है और इन्हें ऑनलाइन भी नहीं बेचा जा सकता. सार्वजनिक स्थानों और पार्कों में भी पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध के साथ, इस बारे में एनजीटी के भी अनेक आदेश हैं. वर्तमान नियमों के बारे में जनता और पुलिस को जागरूक करने की बजाय, हर साल पारित किए जा रहे अस्पष्ट आदेशों से सुप्रीम कोर्ट की साख दांव पर लगना, लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.

इस मुद्दे पर क्या कहना है कानून के जानकारों का

सुप्रीम कोर्ट में वकील विराग गुप्ता कहते हैं

“ ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले अगर लागू नहीं हो पाये तो इससे कानून का रसूख कम होता है, बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पुराने नियमों के पालन की व्यवस्था को मजबूत करते हुए ही निर्देश जारी करता, जिससे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना नहीं होती, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लोगों में जागरुकता तो बढ़ेगी लेकिन इस फैसले को निचले स्तर पर लागू न करने से खुद सुप्रीम कोर्ट की साख पर सवाल खड़े होना लाजमी है.

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