गांधी की इस विरासत का कोई पुरसाहाल नहीं !

नैनीताल: दुनिया भर को अहिंसा की ताकत का अहसास कराने वाले महात्मा गांधी की एक विरासत ऐसी भी है, जो दुनिया भर में तो दूर, भारत में तक पहचान कायम नहीं कर सकी है.

उपेक्षा का शिकार है ‘गांधी मंदिर’

नैनीताल के ताकुला गांव स्थित ‘गांधी मंदिर’ को यह नाम इसलिए मिला क्योंकि महात्मा गांधी ने खुद इस भवन का शिलान्यास किया था. वर्ष 1929 और फिर वर्ष 1932 में वे यहां रहने भी आए. लेकिन गांधी से जुड़ा यह भवन अब तक राष्ट्रीय धरोहर या स्मारक का दर्जा हासिल नहीं कर सका. हालत यह है कि गांधी की जयंती और बलिदान दिवस पर भी किसी को इस ऐतिहासिक विरासत की सुध नहीं आती. हालांकि, ताकुला गांव के स्थानीय लोग जरूर गांधी की यादों को सहेजे हुए हैं और अपने स्तर पर यहां कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. ग्राम प्रधान ताकुला हिमांशु पांडे का कहना है कि गांव में हम अपने स्तर पर कार्यक्रम करते हैं, लेकिन वर्षों तक यह गांव और गांधी मंदिर उपेक्षा का शिकार रहा. अब एडीबी की ओर से परियोजना प्रस्तावित है. इसके बाद गांव को वैश्विक पहचान मिल सकेगी.

1929 में यहां आए थे गांधीजी

नैनीताल-हल्द्वानी मार्ग पर नैनीताल से करीब चार किलोमीटर दूर सड़क से लगा हुआ है ताकुला गांव. इसी गांव में करीब 200 मीटर पैदल दूरी पर गांधी मंदिर स्थित है. ब्रिटिश काल में स्थानीय निवासियों को कुली-बेगारी करने के लिए मजबूर किया जाता था और इसके एवज में उन्हें कोई पारिश्रमिक भी नहीं मिलता था. इसके विरोध में वर्ष 1921 में बागेश्वर जनपद से अहिंसक आंदोलन प्रारंभ हुआ था, जो धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों तक बढ़ता गया. आंदोलन को समर्थन देने के लिए ही महात्मा गांधी 1929 में नैनीताल आए थे. गांधी ने कुली-बेगार आंदोलन को रक्तहीन क्रांति नाम दिया. उस दौरान ताकुला गांव में कारोबारी गोविंद लाल साह के यहां गांधी के ठहरने की व्यवस्था की गई. साह ने इच्छा जताई कि वह गांव में ‘गांधी मंदिर’ नाम से भवन बनवाना चाहते हैं. उनके अनुरोध पर खुद गांधी ने इस भवन का शिलान्यास किया. 1932 में दूसरे प्रवास के दौरान गांधी इसी भवन में ठहरे.

आजादी के बाद गांधी मंदिर की किसी ने सुध नहीं ली. भवन खस्ताहाल स्थिति में पहुंच गया. गोविंदलाल साह के रिश्तेदार और वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह बताते हैं कि ग्रामवासियों के प्रयासों से वर्ष 1969 में गांधी जयंती शताब्दी वर्ष पर इसे स्मारक के तौर पर विकसित करने की पहल हुई, लेकिन लीज और अन्य तमाम बाधाएं खड़ी हो गईं. फिर वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा यहां पहुंचे और गांव का नाम गांधी ग्राम रखने की स्वीकृति दी. इसके बाद मंडी समिति ने बजट मुहैया कराया और कुमाऊं मंडल विकास निगम ने जर्जर हो चुके भवन की मरम्मत कराई.

गांधी मंदिर को दिया जाएगा नया रूप

एक साल पहले गांधी मंदिर को नया रूप देकर यहां गांधी स्टडी सेंटर, फोटो गैलरी, गांधी की प्रतिमा की स्थापना का फैसला लिया गया. एशियन डेवलपमेंट बैंक की नैनीताल इंप्लीमेंटेशन यूनिट के साइट इंजीनियर एसके शर्मा ने बताया कि प्रोजेक्ट मंजूर हो चुका है. इस पर जल्द काम शुरू होगा. यहां गांधी साहित्य उपलब्ध कराया जाएगा.

गांधी को कितना जानते हैं लोग ?

ताकुला गांव और नैनीताल में ग्रामीणों, शहरवासियों से गांधी से जुड़ी जानकारियों पर कुछ सवाल किए. उनसे पूछा गया कि गांधीजी ने लंदन में कौन सी डिग्री ली थी तो इसका जवाब अधिकतर लोग नहीं दे सके. उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी भी चार स्कूली छात्रों ने बताया, बाकी महात्मा गांधी या बापू ही नाम जानते हैं. गांधी की पत्नी कस्तूरबा का नाम भी स्कूली बच्चों को ही मालूम था. हालांकि, गांधीजी के तीन बंदर (बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो) की कहानी लगभग सबको पता थी.

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