जब लेखक खुशवंत सिंह को आए एक फोन कॉल ने हैदराबाद का करा दिया भारत में विलय

आजाद भारत में हैदराबाद न मिलकर पाकिस्तान में मिलना चाहता था, क्या थी उसकी चाल. मशहूर पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी किताब Truth, Love & a Little Malice में बताया है.

विश्वजीत भट्टाचार्यः खुशवंत सिंह मशहूर पत्रकार और लेखक थे। पत्रकार बनने से पहले खुशवंत ने लंदन में भारत के हाई कमीशन में भी काम किया था। कम भी लोगों को पता है कि हैदराबाद के भारत संघ में विलय की पटकथा का खुशवंत सिंह भी एक हिस्सा थे। उनको आई एक फोन कॉल ने हैदराबाद के भारत में विलय की भूमिका पक्की कर दी थी।

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कहां से खुशवंत को आई थी कॉल
खुशवंत सिंह ने अपनी किताब Truth, Love & a Little Malice में लिखा है कि रोज की तरह उस दिन भी वो हाई कमीशन में बतौर प्रेस अटाशे अपना काम कर रहे थे। उस वक्त ब्रिटेन में वीके कृष्ण मेनन भारत के हाई कमिश्नर थे। खुशवंत सिंह ने लिखा है कि मेनन कभी भी जल्दी दफ्तर नहीं आते थे। ऐसे में अचानक ऑपरेटर का फोन आया कि कनाडा से कोई बात करना चाहता है। खुशवंत सिंह ने जब फोन कॉल रिसीव की, तो उधर से बोलने वाले ने कहा कि वो एक हथियार निर्माता कंपनी से बोल रहा है और हैदराबाद के निजाम ने बड़ी तादाद में स्प्रिंगफील्ड रायफलों और कारतूस का ऑर्डर दिया है। कंपनी के प्रतिनिधि ने खुशवंत को ये भी बताया कि ब्रिटिश सरकार से उनका ऐसे किसी सौदे के संबंध में जानकारी साझा करने का समझौता था। ऐसे में वो भारत की नई सरकार को भी जानकारी दे रहे हैं।

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खुशवंत ने तुरंत दिल्ली भेजी जानकारी
खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि इसकी जानकारी उन्होंने तुरंत दिल्ली में विदेश मंत्रालय को भेजी और वहां से आईबी की तस्दीक के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल से बातचीत कर हैदराबाद के भारत में विलय के लिए सैन्य कार्रवाई का खाका तैयार किया गया। खुशवंत सिंह ने लिखा है कि वो उनकी खुशकिस्मती थी कि एक अहम मसले को सुलझाने का वो छोटा सा जरिया बने।

पाक से करार कर रहा था निजाम
बता दें कि हैदराबाद के तत्कालीन निजाम मीर उस्मान अली खान ने पाकिस्तान में जिन्ना को संदेश भेजकर कहा था कि वो भारत की किसी कार्रवाई के खिलाफ हैदराबाद की सैन्य मदद करें, लेकिन जिन्ना ने निजाम का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इसके बाद ही निजी रजाकारों की सेना के जरिए हिंदुओं के खिलाफ हिंसा शुरू की गई थी। जिसके बाद आखिरकार 13 सितंबर 1948 को सैन्य कार्रवाई शुरू की गई और 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया गया।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार है. उनसे [email protected] पर संपर्क कर किया जा सकता है.


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