मुस्लिम महिलाओं की राय पर बनेगा मॉडल निकाहनामा

मुसलमानों में शादी को एक कॉन्ट्रैक्ट माना गया है. जब लड़का और लड़की का निकाह होता है तो दोनों के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट पर साइन होता है. जिस पेपर पर दोनों साइन करते हैं उसे निकाहनामा कहा जाता है. क्योंकि अब भारत सरकार ने तीन तलाक को अपराध माना है. जिसके बाद इस शादी के कॉन्ट्रैक्ट में भी बदलाव की जरूरत महसूस हुई है.

ऑल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल और ऑल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन बोर्ड ने अपने लिए जो नया मॉडल निकाहनामे बनाने पर विचार कर रहा है उसमें वो देवबंदी व बरेलवी मसलक के उलमा की भी राय लेगा. इसके साथ ही वो मॉडल निकाहनामे की एक प्रति ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ को भी भेजेगा. इन तीनों की राय के बाद ही निकाहनामे के प्रावधानों पर अंतिम मोहर लगेगी. इस मॉडल निकाहनामे को पूरे देश में लागू किया जाएगा.

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महिलाओं की राय भी है शामिल

मुस्लमानों में अभी तक जो निकाहानामा हुआ उसमें महिलाओं से राय-मशविरा नहीं किया गया. लेकिन अब जो मॉडल निकाहानामा तैयार किया जा रहा है उसमें महिलाओं की राय को भी शामिल किया गया है. ऑल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी हाजी मोहम्मद ने इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि, काउंसिल के मॉडल निकाहनामे में कानपुर की महिला काजियों की राय को भी शामिल किया गया है. इसके साथ ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (महिला) के पक्ष को भी शामिल किया गया है.

निकाहनामे में अभी क्या है प्रावधान

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मोदी सरकार ने तीन तलाक पर अध्यादेश लाकर उसे अपराध माना है. जिसके बाद निकाहनामे में बदलाव की जरूरत आन पड़ी. अभी जो स्थिती है उसमें निकाहनामे में दूल्हा, दुल्हन के नाम, उनके पते और उनके माता-पिता के नाम लिखे जाते है. साथ ही निकाहनामे में दो गवाहों के नाम, उनके पते और उनके साइन होते हैं. निकाहनामे में निकाह पढ़ाने वाले काज़ी की पूरी जानकारी उनके दस्तखत के साथ लिखी जाती है.

मॉडल निकाहनामा कई मायनों में है ख़ास

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तीन तलाक पर कानून बनने के बाद जो नया मॉडल निकाहनामे तैयार किया जा रहा है उसमें तीन तलाक को रोकने के लिए सख्त प्रावधान शामिल किए गए हैं. इसके साथ ही बेटियों को उनका हक मिल सके इसके लिए भी इसमें प्रावधान किए गए है.  मॉडल निकाहनामे में ऐसी व्यवस्था दी गई है कि बेटियों को उनके निकाह के समय ही उनका तरका(पिता की संपत्ति से मिलने वाले हक) दे दिया जाए.  साथ ही मेहर की धनराशि भी शादी के दिन ही दे दी जाए.
अभी तक ज्यादतर मुस्लिम महिलाओं को तरका नहीं दिया जाता. साथ ही मेहर भी तलाक के समय दिया जाता है. और पति के मरने पर महिलाओं से मेहर की राशि माफ कर देने की बात की जाती है.

 

 

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