किसानों को विपक्षियों ने पुचकारा, सरकार को मंच से दी चेतावनी

नई दिल्ली: दिल्ली में हजारों किसान इकट्ठा हुए हैं. करीब दो महीने पहले भी किसान दिल्ली आए थे और जमकर प्रदर्शन किया था, लेकिन मोदी सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी. दरअसल, किसान इससे परेशान हैं कि उपज का सही भाव उन्हें नहीं मिलता. वे कर्ज में डूबे हैं और लाखों परेशान किसानों ने अपनी जान दे दी है. ऐसे में किसानों ने दिल्ली में एकजुट होकर न्याय की मांग की है.

दिल्ली आए किसानों की ओर से देश की राजधानी में जगह-जगह पोस्टर चस्पा किए गए हैं. इसमें लोगों से माफी मांगते हुए किसानों की दुर्दशा की बात कही गई है. पोस्टर में बताया गया है कि किसान को मूंग की दाल के हर किलो के लिए 46 रुपए मिलते हैं और आम आदमी को दुकानों से यही मूंग दाल 120 रुपए किलो की दर से बेची जाती है. जो टमाटर किसान मंडी में 5 रुपए किलो बेचता है, उसे आम लोगों तक पहुंचने के दौरान 30 रुपए का भाव दे दिया जाता है. सेब को किसान से 10 रुपए प्रति किलो की दर पर खरीदा जाता है और बाजार में 110 रुपए में बेचा जाता है. वहीं, दूध उत्पादकों से प्रति लीटर दूध 20 रुपए में खरीदकर 42 रुपए में बेचा जाता है. यानी किसान मार खा रहा है और बिचौलिए मलाई खा रहे हैं.

किसानों की दुर्दशा तो हर राज्य में है, लेकिन मध्यप्रदेश इनमें सबसे ऊपर है. 2006 से 2016 तक देश में 1 लाख 42 हजार किसानों ने परेशान होकर खुदकुशी की थी. मध्यप्रदेश में साल 2016 में ही 1321 किसानों ने जान दे दी. केंद्र सरकार ने लोकसभा में मार्च 2018 में बताया कि 2013 के बाद मध्यप्रदेश में किसानों की खुदकुशी की ये सबसे ज्यादा घटनाएं रहीं. पूरे देश में 2014 से 2016 तक किसानों की खुदकुशी की घटनाएं कम हुईं, लेकिन मध्यप्रदेश में 21 फीसदी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की. बताना जरूरी है कि मध्यप्रदेश में 46 फीसदी किसान कर्ज में गहरे डूबे हैं और इसे लौटाने का तरीका उन्हें पता नहीं है क्योंकि फसल उगाने में होने वाला खर्च तक इसे बेचने पर नहीं मिलता.

दिल्ली में किसानों के विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर आंकड़ों को देखने की जरूरत है. ये आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के बीच 86 लाख ने खेती का काम छोड़ दिया. जबकि, खेतों में काम करने वाले मजदूरों की तादाद में 37 लाख की बढ़ोतरी हुई. इसी दौरान 5 एकड़ से छोटे खेतों की संख्या 2016 तक बढ़कर 1 करोड़ 26 लाख हो गई. यानी बड़ा रकबा खत्म हुआ है और किसान बदहाली की वजह से खेती को छोड़ रहा है.

किसान की हालत कितनी खराब है, ये इसी से पता चलता है कि कोई किसान अगर चार महीने में पकने वाली फसल उगाने के बाद उसके एवज में महज 600 रुपए का फायदा पाता है. जबकि, मंडी तक उपज ले जाने के लिए ही उसे 60 रुपए प्रति क्विंटल का खर्च देना होता है. जब किसान इसी तरह बदहाली के आलम में जीए और सरकारी तंत्र बेखबर हो, तो ऐसे में मुंबई से लेकर दिल्ली तक मार्च निकालने के अलावा किसानों के पास क्या कोई रास्ता बच जाता है ?

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