मार्गशीर्ष महीना है खास, करें यह काम

पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष यानि अगहन मान शुरु हो गया है, जो एक महीने तक रहेगा. धर्म ग्रंथों में इस महीने को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप कहा गया है. हिंदू कैलेंडर में चैत्र माह हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है तो वही फाल्गुन महीना वर्ष का अंतिम महीना होता  है. 9वें माह को अर्थात मार्गशीर्ष पड़ता  है जिसे अगहन मास भी कहते है.

शास्त्रों में मार्गशीर्ष की महत्ता

हिंदू पंचांग की गणना चंद्रमा की कलाओं के आधार पर की जाती है. इसलिए हर मास को अमावस्या और पूर्णिमा की तिथियों तक कृष्ण और शुक्ल पक्ष में विभाजित किया गया है. पूर्णिमा के बाद की प्रथम तिथि से लेकर अमावस्या तक के काल को कृष्ण पक्ष कहा जाता है और अमावस्या के बाद प्रथम तिथि से लेकर पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष. पूर्णिमा को पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि चंद्रमा के साथ-साथ मास भी पूर्ण हो जाता है. जो पूर्णिमा जिस नक्षत्र में होती है उसी नक्षत्र के नाम पर उस महीने का नाम रखा गया है. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है इसलिए इस माह को मार्गशीर्ष कहा जाता है. इस माह को मगसर, अगहन, अग्रहायण आदि नामों से भी जाना जाता है.

वैसे तो भगवान श्री कृष्ण की पूजा और महिमा का महीना भाद्रपद अथवा भादों को माना जाता है. लेकिन धार्मिक ग्रंथों में मार्गशीर्ष महीने को भी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है. इस महीने में स्नान दान का भी विशेष महत्व बताया गया है. श्रीमद्भगवदगीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी 56 विशिष्ट विभूतियों का वर्णन किया है. भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि संवत्सर के महीनों में मार्गशीर्ष का महीना मैं हूं. यह माह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस माह की शुक्ल एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. भगवान श्री कृष्ण ने इस माह को अपना स्वरूप बताते हुए गोपियों से कहा था कि जो मनुष्य इस माह यमुना स्नान करते हैं, वो उनके सबसे करीब होते हैं. कहते हैं कि इस माह ऋषि कश्यप ने कश्मीर को बसाया था.

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करें यह काम

इस माह में पूजा पाठ, उपासना का अपना विशेष महत्व हैं. अगहन माह को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं. भगवान श्री कृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है. इन्हीं स्वरूपों में एक मार्गशीर्ष श्री कृष्ण का रूप है. सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया. मार्गशीर्ष शुक्ल को उपवास प्रारंभ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए. हर द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दमोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए.इससे पूजक ‘जातिस्मर’ पूर्व जन्म की घटनाओं को याद रखने वाला हो जाता है, जहां फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा जरुर करना चाहिए. क्योंकि इसी दिन चंद्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था. इस दिन माता, बहन, पत्नी, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही ‘दत्तात्रेय जयंती’ मनाई जाती है.

मार्गशीर्ष माह में विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीमद्भगवदगीता, और गजेन्द्र मोक्ष इन तीनों ग्रंथों के पाठ की बहुत महिमा है, इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ना चाहिए. इस मास में ‘श्रीमद्भगवदगीता’ ग्रंथ को देखने भर की महिमा है. स्कंद पुराण में लिखा है- घर में अगर भागवत गीता हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए. इस मास अपने गुरु को, इष्ट को दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त हो जाते हैं.

मार्गशीर्ष माह में गंगा-स्नान, दान, महापुण्य का लाभ देते हैं. ऊन और तुलसी, तुलसी की जड़ का उपयोग करना उत्तम बताया गया है. स्नान करते समय गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए. मार्गशीर्ष मास में विष्णु-लक्ष्मी की आराधना का बड़ा महत्व है. कई जगह लोग विष्णु-सहस्त्रनाम का पाठ भी करते हैं.

शंख पूजा का महत्व

मार्गशीर्ष माह में शंख की विशेष पूजा का वर्णन है. शंख में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलत हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें कर दें. इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं.

पड़ने वाले व्रत व त्यौहार

मार्गशीर्ष माह का आरंभ कार्तिक पूर्णिमा के बाद 24 नवंबर 2018 से लगा है, जो कि 22 दिसंबर 2018 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक रहेगा। मार्गशीर्ष मास में बड़े स्तर पर मनाया जाने वाला कोई त्योहार तो नहीं आता लेकिन धार्मिक रूप से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां इस माह में अवश्य पड़ती हैं जिनमें व्रत व पूजा करके पुण्य की प्राप्ति की जा सकती है.

उत्पना एकादशी

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत 3 दिसंबर को रखा जायेगा.

मार्गशीर्ष अमावस्या

मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन व दर्श अमावस्या भी कहा जाता है. धार्मिक रूप से इस अमावस्या का महत्व भी कार्तिक अमावस्या के समान ही फलदायी माना जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन शुभ माना जाता है. स्नान, दान व अन्य धार्मिक कार्यों के लिए भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है. दर्श अमावस्या को पूर्वजों के पूजन का दिन भी माना जाता है. मार्गशीर्ष का उपवास 7 दिसंबर को पड़ा है.

विवाह पंचमी

अमावस्या के बाद शुरु होगा मार्गशीर्ष माह का शुक्ल पक्ष, जो पहली महत्वपूर्ण तिथि है वह है पंचमी तिथि. मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है. माना जाता है प्रभु श्री राम का माता सीता से विवाह इसी दिन संपन्न हुआ था. इसलिए यह दिन मांगलिक कार्यों के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. विवाह पंचमी 12 दिसंबर को है.

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मोक्ष एकादशी व गीता जयंती

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है यह एकादशी धार्मिक रुप से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. मान्यता है कि इस एकादशी का उपवास रखने वाले को मोक्ष मिलता है. इसलिए इसका नाम भी मोक्षदा एकादशी है. यह भी मान्यता है कि हिंदूओं के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था. इसलिए इस दिन को गीता जंयती के रूप में मनाया जाता है. यह पवित्र तिथि 18 दिसंबर को है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व दत्तात्रेय जयंती

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का भी धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है. इस दिन को दत्तात्रेय जयंती के रूप में मनाया जाता है. दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का ही अंश माना जाता है जिन्होंने अत्री ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया की कोख से जन्म लिया. मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत और भगवान द्त्तात्रेय जयंती का पर्व 22 दिसंबर को है. धार्मिक दृष्टि से मार्गशीर्ष महीने का बहुत अधिक महत्व है.

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