छोटे से राज्य के राजकुमार थे स्वामी अयप्पा, यहां दलितों के पैर छूते हैं ब्राह्मण

सबरीमाला मंदिर में जिन स्वामी अयप्पा की पूजा होती है, वो पंथालम राज्य के राजकुमार थे. पंथालम राज्य केरल के पथनामिथिट्टा जिले में था. जिस महल में अयप्पा पैदा और बड़े हुए, उसे देखने आज भी श्रद्धालु जाते हैं

Swami Ayyappa was prince of the small kingdom, Brahmins touch the feet of Dalits here
फोटो साभार- गुगल

तिरुवनंतपुरम: पथनाथिटा जिले के सबरीमाला मंदिर में अब सभी उम्र की महिलाएं जाकर उन स्वामी अयप्पा के दर्शन कर सकेंगी, जिन्होंने हमेशा अविवाहित रहने का संकल्प लिया था. स्वामी अयप्पा किसी पौराणिक कहानी के पात्र नहीं हैं. वो बाकायदा केरल में पैदा हुए थे और राजवंश से संबंध रखते थे.

ये भी पढ़ें- सबरीमाला पर फैसला: पीठ में शामिल महिला जज नहीं रहीं महिलाओं के पक्ष में

कहां हुआ था स्वामी अयप्पा का जन्म ?

सबरीमाला मंदिर में जिन स्वामी अयप्पा की पूजा होती है, वो पंथालम राज्य के राजकुमार थे. पंथालम राज्य केरल के पथनामिथिट्टा जिले में था. जिस महल में अयप्पा पैदा और बड़े हुए, उसे देखने आज भी श्रद्धालु जाते हैं. अयप्पा के सबसे बड़े मुस्लिम भक्त बाबर हुए. उन्हें मलयालम में वावर कहा जाता है. बाबर अरब से आए थे और अयप्पा से युद्ध किया था. युद्ध में पराजित होने के बाद वो स्वामी अयप्पा के शिष्य हो गए थे.

ये भी पढ़ें- जारी हुआ सर्जिकल स्ट्राइक का एक और वीडियो, देखिए कैसे सेना ने किया था आतंकी ठिकानों को तबाह

महिलाओं की नजर से दूर रहना चाहते थे अयप्पा

पुरानी कथाओं के अनुसार स्वामी अयप्पा ने अविवाहित रहने का फैसला किया था. उनका कहना था कि जब तक कन्नी स्वामी यानी पहली बार आने वाले भक्त सबरीमाला आना बंद नहीं करते, वो शादी नहीं करेंगे. मान्यताओं के मुताबिक अयप्पा ये भी कहते थे कि अविवाहित रहकर वो अपने भक्तों की प्रार्थना पर पूरा ध्यान दे सकेंगे. इसी वजह से रजस्वला से होने से पहले की उम्र की लड़कियों से लेकर रजोनिवृत्ति कर चुकी महिलाओं को ही मंदिर में प्रवेश मिलता था.

ये भी पढ़ें- तुलसी के जन्मस्थान पर फिर विवाद, संत के मुताबिक एक नहीं चार थे तुलसीदास !

सबरीमाला में दलितों के पैर छूते हैं ब्राह्मण

इस मंदिर की तमाम खासियत हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि यहां दर्शन के वक्त भक्त काले कपड़े पहनकर एक साथ खड़े होकर प्रार्थना करते हैं. इस प्रार्थना को अगर कोई दलित कराता है, तो समूह में खड़े लोग उसके पैर छूते हैं. यानी समूह में अगर कोई ब्राह्मण भी शामिल है, तो वो भी उस दलित के पैर छूता है. यानी मंदिर में जात-पात का कोई भेदभाव नहीं है.

Previous articleसबरीमाला पर फैसला: पीठ में शामिल महिला जज नहीं रहीं महिलाओं के पक्ष में
Next articleखड़े नहीं हो पा रहे थे राम-लक्ष्मण और शत्रुघ्न, फिर टली वर्ल्ड हेरिटेज रामलीला