निषादों’ के भाजपा में आने से बदलेंगे गोरखपुर संसदीय सीट के समीकरण

गोरखपुर: सपा-बसपा गठबंधन से छिटके सांसद प्रवीण निषाद तमाम उठापटक के बाद आखिरकार गुरुवार को भाजपा में शामिल हो गए। उनके भाजपा में आने के बाद गोरखपुर सांसदीय सीट पर सियासी समीकरण तेजी से बदल सकते हैं। गोरखपुर और बांसगांव में निषाद मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है। गोरखपुर में साढ़े तीन लाख के करीब और बांसगांव में डेढ़ लाख के आसपास निषाद मत हैं।

ऐसे में भाजपा नेतृत्व और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कोशिश यही है कि निषाद समुदाय के नेताओं को अपने पाले में लाकर निषाद मतों का बिखराव रोका जा सके। अब जब प्रवीण भी कमल से कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए भाजपा का झण्डा थाम चुके हैं तो ऐसे में भाजपा रणनीतिकार अपने मकसद में कामयाब होते दिख रहे हैं। प्रवीण के भाजपा में आने के बाद पार्टी उन्हें यहां से अपना उम्मीदवार बना सकती है। उधर, सपा ने पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद को टिकट देकर इस समाज के वोट बैंक को साधने की कोशिश की है।

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निषाद पार्टी बनाकर चर्चा में आये डॉक्टर संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद 2018 में यहां हुए उपचुनाव से सीधे राजनीति में उतरे। सपा के बैनर तले उन्होंने चुनाव लड़ा और इस हाईप्रोफाइल सीट पर भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ल को करीब 23 हज़ार मतों से परास्त किया। यह जीत प्रवीण के लिए इस नाते और भी अहम हो गयी, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई सीट पर जीत दर्ज कर निषाद समाज में गहरी पैठ बना ली। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि प्रवीण की जीत में निषाद मतों की निर्णायक भूमिका रही थी।

वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र गोपाल विक्रमादित्य कहते हैं कि 2018 के उपचुनाव में भी निषाद मतों ने गोरखपुर सीट पर बड़ा बदलाव किया। इस बार भी निषाद समाज के वोट बैंक की काफी अहमियत रहने वाली है। गोरखपुर लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, कैम्पियरगंज, पिपराइच और सहजनवां शामिल हैं। गोरखपुर शहर में 40 हज़ार, ग्रामीण में 80 हजार, पिपराइच में 90 हज़ार, कैम्पियरगंज में 90 हजार और सहजनवां में 50 हजार निषाद मतदाता हैं।

भाजपा की कोशिश है कि निषाद समाज के नेताओं को एक मंच पर लाकर हिन्दू मतों का विभाजन रोका जाए। इसी की पहली कड़ी में अमरेंद्र और अब दूसरी कड़ी में प्रवीण को भाजपा ने अपने खेमे में लाकर हिन्दू वोट बैंक को एकाकार करने की कोशिश की है। शीर्ष और स्थानीय नेतृत्व इसमें कामयाब रहा तो गोरखपुर सीट पर हवा का रुख उनकी ओर हो सकता है।

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