राफेल मुद्दे को लेकर कांग्रेस का हमलावर रुख जारी है कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर राफेल डील को लेकर एक बार फिर हमला बोला और कहा कि हम कई सालों से कह रहे हैं कि राफेल घोटाले में प्रधानमंत्री सीधे तौर पर शामिल हैं. हिंदू अखबार का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि इस खबर ने प्रधानमंत्री की पोल खोल दी. उन्होंने कहा कि भले ही आप रॉबर्ट वाड्रा और चिदंबरम की जांच कीजिए, मगर राफेल पर भी सरकार को जवाब देना चाहिए.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल ने यह भी कहा कि याद रखिए 30 हजार करोड़ का इस्तेमाल आप लोगों के लिए किया जा सकता था. यह अनिल अंबानी का नहीं है. यह आपका पैसा है. राहुल गांधी ने यह भी कहा कि राफेल के मामले में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने झूठ बोला.
‘नोट’ का राफेल की कीमत से कोई लेना देना नहीं: पूर्व रक्षा सचिव
राफेल मुद्दे पर रक्षा सचिव के जिस नोट को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हमलावर है और का हवाला दे रहे हैं. उस नोट को बनाने वाले तत्कालीन रक्षा सचिव जी मोहन कुमार का कहना है कि 24 नवंबर 2015 की जिस नोट का हवाला दिया जा रहा है उनके उस नोट का राफेल की कीमत से कोई लेना देना नहीं है.
राफेल पर सच्ची नहीं अखबार की खबर: रक्षा मंत्री
लोकसभा में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अगर अखबार सच को सामना लाना चाहता तो तब और आज के रक्षा मंत्री की बात को भी इसमें शामिल करना चाहिए था. अखबार ने पूरी सच्चाई सामने नहीं रखी है. मंत्री ने कहा कि सदन में दिए अपने जवाब में मैंने सभी बिंदुओं के बारे में बताया है. एनएसी में सोनिया गांधी की दखल के बारे में पूरा देश जानता है, इसे आप क्या कहेंगे. एक अखबार की कटिंग से क्या साबित करना चाहते हैं. राफेल पर हर सवाल का जवाब दिया जा चुका है और अब यह मुद्दा खत्म हो चुका है. कांग्रेस पार्टी विदेश ताकतों के दवाब में इस मुद्दे को बार-बार तूल दे रही हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट में क्या है
रक्षा मंत्रालय ने फ्रांस के साथ रफ़ाल सौदे की बातचीत में प्रधानमंत्री कार्यालय के दखल पर एतराज़ जताया था. अंग्रेज़ी अखबार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक रक्षा मंत्रालय तो सौदे को लेकर बातचीत कर ही रहा था, उसी दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय भी अपनी ओर से फ्रांसीसी पक्ष से बातचीत में लगा था. अखबार के मुताबिक 24 नवंबर 2015 को रक्षा मंत्रालय के एक नोट में कहा गया कि PMO के दखल के चलते बातचीत कर रहे भारतीय दल और रक्षा मंत्रालय की पोज़िशन कमज़ोर हुई. रक्षा मंत्रालय ने अपने नोट में तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का ध्यान खींचते हुए कहा था कि हम PMO को ये सलाह दे सकते हैं कि कोई भी अधिकारी जो बातचीत कर रहे भारतीय टीम का हिस्सा नहीं है उसे समानांतर बातचीत नहीं करने को कहा जाए. इस नोट में ये भी कहा गया कि अगर PMO रक्षा मंत्रालय की बातचीत पर भरोसा नहीं है तो उसे PMO की अगुवाई में नए सिरे से बातचीत शुरू करनी चाहिए.