राम मंदिर की ‘फसल’ बीजेपी को अकेले नहीं काटने देगी शिवसेना, ये है ठाकरे का बड़ा प्लान

लखनऊ: केंद्र में भारी बहुमत और देश के अधिकतर प्रदेशों में सरकार बनाने वाली बीजेपी राम मंदिर बनाने का रास्ता निकाल पाने में अब तक नाकाम ही रही। बीजेपी ने 2014 में वोट भले विकास और अच्छे दिन के नाम पर मांगे थे मगर अब पांच साल बाद उसे सफाई अंततः मंदिर पर ही देनी पड़ रही है।

राम मंदिर को लेकर साधु संतों का दबाव बढ़ रहा है तो अब शिवसेना ने भी अपना सियासी दांव चल दिया है। मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी द्वारा राम की भव्य मूर्ति बनाने की घोषणा के बीच शिवसेना ने अयोध्या में मंदिर के शिलांन्यास का शिगूफा छोड़ दिया है। जिसके लिए बाबरी मस्जिद को गिराने के आरोपी रहे बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे खुद पहली बार अयोध्या आ रहे हैं। बीजेपी की धड़कने तेज हो गई हैं। उद्धव का राम मंदिर बनाने का दांव और दावना कई मायने में बेहद अहम है।

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बीजेपी की सबसे बड़ी आलोचक, समय-समय पर आइना दिखाने और मुश्किल वक्त में साथ खड़ी रहने वाली शिवसेना अब राम मंदिर को लेकर बीजेपी से आगे निकले की होड़ में है। इसीलिए 25 नवंबर को उद्धव ठाकरे अयोध्या आने वाले हैं। जिसके लिए पार्टी ने देश भर से शिवसैनिकों को अयोध्या बुलाया है। जहां संतों के साथ भी वो मुलाकात करेंगे और राममंदिर को लेकर आगे की रणनीति तैयार करेंगे। जबकि दूसरी तरफ पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी में साधु संतों ने धर्म संसद बुलाई है। जिसमें वो राममंदिर समेत हिन्दु हितों के विषय पर चर्चा करेंगे। साथ ही धर्मादेश भी जारी होगा।

हिन्दू वोटों पर दावेदारी की जंग

अबतक राजनीतिक तौर पर महाराष्ट्र तक ही सीमित शिवसेना अपने विस्तार को बेकरार है। हिन्दू वोटों और राममंदिर की आड़ में बीजेपी के वोट बैंक पर सेंध लगाने की तैयारी है। जिसके लिए बीजेपी से अलग राममंदिर के एजेंडे को हवा देनी शुरु कर दी है। शिवसेना के रणनीतिकारों को मंदिर को लेकर सक्रियता के लिए यह वक़्त एकदम मुफीद लगा है। अगर पार्टी महाराष्ट्र तक भी खुद को सीमित रखती है तब भी उसके रिश्ते अब बीजेपी से मधुर नहीं रह गए हैं। चुनाव दोनों पार्टियों को अलग ही लड़ना है। ऐसे में शिवसेना मंदिर पर बीजेपी से ज्यादा आक्रामक रुख अपनाकर खुद को हिन्दू हितों का ज्यादा बड़ा चिंतक साबित करना चाहती है।

शिवसेना के एजेंडे में राममंदिर

हिन्दू राष्ट्र और हिन्दुओं की राजनीति करने वाली शिवसेना के एजेंडे में कभी राममंदिर नहीं रहा। वो हमेशा भारतीय संस्कृति और हिन्दुओं की सुरक्षा की राजनीति करती रही है। अब बीजेपी को चुनौती देते हुए शिवसेना ने राममंदिर को अपने एजेंडे में शामिल करके बीजेपी के सामने नया दांव चल दिया है।

‘शिवसेना ने किया था मुख्य काम’

माना जाता है कि 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दिन शिवसेना के नेता पवन पांडे ने बड़ी भूमिका निभाई थी। पवन विध्वंस मामले के मुख्य आरोपियों में  से एक हैं। ढांचा गिराने के बाद बाला साहेब ठाकरे ने कहा था कि कारसेवा में सबसे बड़ा काम तो शिवसैनिकों ने किया है। यानी कि बाबरी मस्जिद को गिराने और मीर बाकि का शिलालेख तोड़ने में सबसे आगे शिवसैनिक ही थी। जिसका दावा खुद पवन पांडे ने कई बार किया है।

5 दिसंबर को हुई थी बैठक

बाबरी विध्वंस के मुख्य आरोपी पवन पांडे के एक बयान के मुताबिक ढांचे को गिराने के लिए कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही तैयारी शुरु कर दी थी। जिसके लिए बकायदा 5 दिसंबर को एक बैठक बुलाई गई थी, जिसमे आडवाणी, उमा भारती, अशोक सिंघल जैसे बड़े नेता मौजूद थे। दावा है कि तमाम नेताओं को बाबरी मस्जिद को गिराने की योजना की जानकारी थी।

कारसेवकों को दी गई थी ट्रेनिंग

पवन पांडे शिवसेना के नेता थे, दावा है कि कारसेवकों को बाबरी गिराने के लिए बकायदा ट्रेनिंग दी गई थी, उन्हें यह सब विस्तार से बताया गया था कि कैसे मस्जिद को तोड़ना है, इसके लिए दो जिलों से सैकड़ों कारसेवकों को बुलाया गया था और उन्हें पत्थर से मस्जिद को तोड़ने की ट्रेनिंग दी गई थी।

योगी पर की थी विवादित टिप्पणी

इसी साल उद्धव ठाकरे ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को भोगी कहा था। इतना ही नहीं ठाकरे ने विरार में शिवाजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण के दौरान योगी के खड़ाऊं नहीं उतारने पर कहा था कि योगी को चप्पलों से पीटना चाहिए, ईश्वर के प्रतिरूप शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने जाने से पहले खड़ाऊं उतारना उनके प्रति सम्मान जाहिर करना है और यह एक सामान्य प्रक्रिया है। योगी ने ऐसा नहीं किया। उनसे और क्या अपेक्षा की जा सकती है? यह शिवाजी महाराज का अपमान है।’ उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर आदित्यनाथ एक योगी हैं तो शिवाजी ‘श्रीमंत योगी’ हैं।

ठाकरे के कार्यक्रम पर रोक लगेगी ?

अब ऐसे में जबकि बीजेपी अयोध्या और राम मंदिर के प्रति समर्पण दिखाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रही है तो बीजेपी के मुकाबले कहीं ज्यादा आक्रामक ‘हिन्दू राजनीति’ करने वाली शिवसेना मंदिर के नाम पर उग रही सियासी फसल में अपना हिस्सा भला क्यों छोड़ेगी ? देखना यह है कि बीजेपी इसकी क्या काट ढूंढती है, चर्चा तो यह भी है कि कानून-व्यवस्था के नाम पर शिवसेना अध्यक्ष के कार्यक्रम पर उत्तर प्रदेश सरकार रोक लगा सकती है। हालांकि प्रदेश सरकार के प्रवक्ता स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने फिलहाल ऐसी किसी संभावना से इंकार किया है। हालांकि उन्होंने ठाकरे पर तंज कसते हुए यह जरूर कहा कि उन्हें रामराज्य की मर्यादाओं का पालन करते हुए महाराष्ट्र में फणनवीस सरकार को सहयोग देना चाहिए। जहां तक अयोध्या में उनके कार्यक्रम का सवाल है रामलला के दर्शन करें। क़ानून व्यवस्था से खिलवाड़ की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी।

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