राम मंदिर को लेकर शिवसेना ने बीजेपी के सामने ऐसी मुश्किल खड़ी कर दी है, जिसके बाद बीजेपी को कोई न कोई निर्णायक और मुद्दे को अपने पास रखने के लिए फैसला लेना पड़ेगा। मुश्किल सिर्फ बीजेपी के लिए ही नहीं है, प्रतिष्ठा शिवसेना की भी दांव पर है।
1500 किलोमीटर दूर मातोश्री में बैठकर उद्धव ने राममंदिर का एजेंडा उठा तो दिया है, पर इसको अंजाम तक पहुंचाने के लिए पूरा जोर लगाना होगा। क्योंकि अब बीजेपी उनकी ‘कमलाबाई’ नहीं रही, जिसको जैसा कहते वही करती।
‘हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार’
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए नया नारा दिया है। ठाकरे ने अपने 24 और 25 नवंबर के अयोध्या दौरे की तैयारियों का जायजा लेने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की. बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, ‘हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार.’ ठाकरे ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से 24 नवंबर को पूरे राज्य में महाआरती का आयोजन करने लिए भी कहा है. वह 24 नवंबर को अयोध्या में सरयू पूजा का भी आयोजन करेंगे.
शिवसेना की मजबूरी है राममंदिर मुद्दा
राम मंदिर को लेकर शिवसेना कभी भी इतना गंभीर नहीं रही जितना उद्धव ठाकरे के राज में हो रही है। ये बात इस बात से बाला साहेब के इस बयान से साबित होती है, जिसमें उन्होंने एक इंटरव्यू में पार्टी लाइन से अलग बयान देते हुए कहा था कि अयोध्या की जमीन पर भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडे की याद में वहां स्मारक बनवाया जाना चाहिए।
नई बीजेपी को ताकत दिखाने की चाहत
बाला साहेब के इस बयान के विपरीत उद्धव ठाकरे राममंदिर को बनाने की मांग कर रहे हैं। राम मंदिर का ठाकरे राग यूं ही नहीं छिड़ा है, इसके पीछे उनकी सियासी मजबूरी भी है। क्योंकि कभी बीजेपी के महाराष्ट्र में जरूरी शिवसेना हासिए पर है, मोदी, शाह की बीजेपी ने मुंह लगाना बंद कर दिया है।
मराठी वोट बैंक बचाना चुनौती
सीएम देवेंद्र फडनवीस ने मराठा आरक्षण को मंजूरी देकर मराठी मानुष का साथ अपने साथ कर लिया है। ऐसे में शिवसेना के शेर के पंजे की धार और दहाड़ को धार कम कर दी है। बीजेपी सिर्फ बाला साहेब की विरासत का ही लिहाज कर रही है। इसीलिए समर्थन वापस लेने के बाद भी बीजेपी नेताओं को शिवसेना के खिलाफ तीखी बयान बाजी करने से मनाकर रखा है। ऐसे में पिता बाला साहेब की ‘कमलाबाई’ को पंजे में दोबारा कसना उद्धव के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन नजर आ रहा है।
पार्टी का वजूद बचाने की कोशिश
महाराष्ट्र में बीजेपी ने पहले ही शिवसेना को महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में अलग होकर चुनाव लड़कर ये संदेश दे दिया है, कि उसे अब पहले जैसे शिवसेना की जरूरत नहीं है। जैसी अटल अडवाणी के जमाने में हुआ करती थी। बीजेपी के इस बर्ताव के लिए उद्धव ही जिम्मेदार है। क्योंकि वो बाला साहेब जैसी स्थित बरकरार रखने में नाकाम हुए। बाला साहेब के जाने के बाद दोनों भाईयों कि लड़ाई में शिवसेना कमजोर हुई, वहीं दिन ब दिन बीजेपी महाराष्ट्र में पांव जमाने में कामयाब हो गई.
संघ और विहिप देंगे जवाब
शिवसेना के राममंदिर एजेंडे को सीमित करने के लिए बीजेपी ने संघ को लगा दिया है। जो विहिप के साथ मिलकर 25 नवंबर को बड़ी सभा और रैली करने की तैयारी में हैं। शिवसेना ने जहां पूरे देश से शिवसैनिकों को बुलाया है, वहीं संघ ने साधू संतों को बुलाकर राममंदिर का अलग नया एजेंडा बनाने की तैयारी में हैं।
शिवसेना के लिए ‘कमलाबाई’ थी बीजेपी
उद्धव के पिता बाला साहेब अटल, अडवाणी की बीजेपी को कमलाबाई कहते थे। जो उनके इशारों में काम करती थी। महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पावर की आत्मकथा ‘ऑन माई टर्म्स’ में लिखते हैं, “बाला साहेब का उसूल था कि अगर आप एक बार उनके दोस्त बन गए तो वो उसे ताउम्र निभाते थे. सितंबर, 2006 में जब मेरी बेटी सुप्रिया ने राज्यसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की तो बाला साहेब ने मुझे फ़ोन किया. वो बोले, ‘शरद बाबू मैं सुन रहा हूँ, हमारी सुप्रिया चुनाव लड़ने जा रही है और तुमने मुझे इसके बारे में बताया ही नहीं. मुझे यह ख़बर दूसरों से क्यों मिल रही है?’
‘कमलाबाई की चिंता मत करो. वो वही करेगी जो मैं कहूंगा.”
“मैंने कहा, ‘शिव सेना-बीजेपी गठबंधन ने पहले ही उसके ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है. मैंने सोचा मैं आपको क्यों परेशान करूँ.’ ठाकरे बोले, ‘मैंने उसे तब से देखा है जब वो मेरे घुटनों के बराबर हुआ करती थी. मेरा कोई भी उम्मीदवार सुप्रिया के ख़िलाफ़ चुनाव नहीं लड़ेगा. तुम्हारी बेटी मेरी बेटी है.’ मैंने उनसे पूछा, ‘आप बीजेपी का क्या करेंगे, जिनके साथ आपका गठबंधन है?’ उन्होंने बिना पल गंवाए जवाब दिया, ‘कमलाबाई की चिंता मत करो. वो वही करेगी जो मैं कहूंगा.” कमलाबाई उनका बीजेपी के लिए कोड-वर्ड था.
ऐसा था बाल ठाकरे का चरित्र
बाल ठाकरे के चरित्र के विरोधाभासों को उनके एनसीपी नेता शरद पवार के संबंधों से परखा जा सकता है. दिन में वो पवार को ‘आटे की बोरी’ कहकर उनका मज़ाक उड़ाते थे और शाम को उन्हें, उनकी पत्नी प्रतिभा और बेटी सुप्रिया को अपने घर रात्रि भोज पर आमंत्रित करते थे.
बाला साहेब ठाकरे की शख्सियत और राजनीति उद्धव ठाकरे को विरासत में मिली है। लेकिन शिवसेना के पंजे में अब वो ताकत नहीं है, जो बाला साहेब के जमाने में हुआ करती थी। ऐसे में उद्धव का राममंदिर दांव कितना कामयाब होगा, ये नवंबर के आखिरी सप्ताह में सामने आ जाएगा।
अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रही है शिवसेनाः प्रदीप सिंह
शिवसेना की इस कवायद को लेकर वरिष्ठ पत्रकार ओपिनियन पोस्ट के संपादक कहते हैं,
‘शिवसेना के पास इस वक्त महाराष्ट्र में अस्तित्व बचाने की लड़ाई है, क्योंकि पार्टी हिन्दुत्व पर लौटकर ही महाराष्ट्र में खुद को बचाए रखना चाहती है। शिवसेना को बीजेपी के साथ गठबंधन करना मजबूरी है, क्योंकि पार्टी में टूट की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में शिवसेना और उद्धव ठाकरे के पास कोई चारा नहीं है। बीजेपी सत्ता में हैं एेसे में राममंदिर का फैसला उन्हें ही लेना है। शिवसेना महज दबाव बनाकर माहौल का क्रेडिट में भागीदार बनना चाहती है’।