‘फ्री हैंड’ वसुंधरा राजे की सियासत दांव पर
2014 के बाद जब से बीजेपी में मोदी और शाह युग की शुरूआत हुई है। तबसे पार्टी से लेकर सरकार में सिर्फ दोनों की ही चली है। संघ की सिर्फ सलाह ली जाती है। सरकार में मोदी की चलती है, वहीं संगठन को लेकर फैसले अमित शाह लेते हैं।
वहीं राजस्थान चुनाव में जिसतरह से टिकट बांटे गए हैं, तो लिस्ट देखकर साफ झलकता है कि अमित शाह और संघ के फैसलों के बीच वसुंधरा राजे की ज्यादा चली।
राजस्थान चुनाव से पहले ये माना जा रहा था कि ये चुनाव अन्य प्रदेशों की तरह अमित शाह की रणनीति और उनकी पसंद के सिर्फ जिताऊ कंडीडेट को टिकट देकर लड़ा जाएगा। लेकिन पांचों लिस्ट देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है, कि वसुंधरा शीर्ष नेतृत्व और अमित शाह, संघ पर भारी पड़ी। क्योंकि ज्यादातर टिकट उन्हीं लोगों को मिले हैं, जो वसुंधरा राजे के चहेते रहे हैं, साथ ही टिकट उनके काटे गए हैं, जिनका वसुंधरा से ज्यादा लगाव नहीं रहा।
डरा रहा है चुनावी ट्रेंड
ऐसे में राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने का जो ट्रेंड रहा है। उसको देखते हुए साफ लग रहा है कि बीजेपी और संघ ने इसबार वसुंधरा को फ्री हैंड छोड़कर भी नई चुनौती दी है। ताकि चुनाव में कुछ ऊंच, नीच होने पर सारा ठीकरा वसुंधरा पर ही फोड़ा जा सके।
चर्चा में रही है शीर्ष नेतृत्व और वसुंधरा की खींचतान
राजस्थान में वसुंधरा और बीजेपी शीर्ष नेतृत्व में खींचतान और तनातनी हमेशा चर्चा में रही है। वसुंधरा के महारानी वाला स्वभाव दिल्ली को कभी बर्दाश्त नहीं हुआ। विधानसभा चुनावों में टिकट बंटवारे को लेकर सीएम वसुंधरा राजे और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच खींचतान की चर्चा रही, जिसकी झलक उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर पता चलता है। वसुंधरा के करीबी मंत्री यूनुस खान को पहली चार लिस्टों में कहीं जगह नहीं मिली। पांचवी लिस्ट में ऐसी सीट से लड़ाया गया, जहां कांग्रेस के कद्दावर नेता सचिन पायलट चुनाव मैदान में हैं।
आखिर तक डटी रही चहेते के लिए
बीजेपी और संघ यूनुस खान के ऊपर लगे आरोपों और हिन्दुत्व के मुद्दे को देखते हुए टिकट देने से कतरा रही थी। पर वसुंधरा राजे यूनुस को टिकट देने में अड़ी रही। वहीं एंटी इनकंबेंसी के वाबजूद ज्यादातर विधायकों को टिकट दिया गया। सिर्फ वसुंधरा के विरोधी खेमे के नेताओं के ही टिकट काटे गए। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जीतने की क्षमता वाले उम्मीदवारों को टिकट देने की तैयारी में थे, लेकिन वसुंधरा अपने वफादारों को टिकट दिलाने में डटी रहीं। जिसमें उनको सफलता भी मिली। संघ की पसंद का भी यहां ख्याल किया गया, पर ज्यादातर संघ ने उन्ही का नाम आगे बढ़ाया जो वसुंधरा के करीबी थे।
प्रदेश अध्यक्ष के लेकर हुई थी तकरार
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब बीजेपी आलाकामन से वसुंधरा की सीधी तकरार हुई। इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी पहले जमकर तनातनी हुई थी। बीजेपी शीर्ष नेतृत्व गजेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता था। लेकिन ये वसुंधरा राजे को बर्दाश्त नहीं हुआ, प्रदेश अध्यक्ष को लेकर करीब दो महीने तक खींचतान चली। इस दौरान वसुंधरा अपने करीबी मंत्रियों और विधायकों को लेकर दिल्ली तक पहुंची, जहां आलाकमान के सामने परेड कराकर अपनी ताकत और एक जुटता का मुजाहिरा किया। इसके बाद पार्टी आलाकमान को गजेंद्र सिंह का नाम वापस लेना पड़ा और वसुंधरा के करीबी मदन लाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया।
काला कपड़ा पहनकर किया था स्वागत
इस दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में जो बात रही वो ये कि काले लिबास में वसुंधरा मदन लाल सैनी का स्वागत करने पहुंची। वसुंधरा ने प्रदेश अध्यक्ष का चार्ज लेने से पहले उनको तिलक किया और फिर कुर्सी में बैठाया। इस दौरान उनके व्यक्तित्व के विपरीत पहनी गई काली लिबास चर्चा का विषय बनी रही।
जीत हार से तय होगा वसुंधरा का भविष्य
राजस्थान की महारानी कही जाने वाली वसुंधरा अबतक हर बार बीजेपी शीर्ष नेतृत्व या यूं कहें अमित शाह पर भारी पड़ती रहीं। लेकिन ये चुनाव वसुंधरा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जीत मिली तो वसुंधरा के खाते में जाएगी, राजस्थान में उनका कद और बड़ा हो जाएगा। वहीं हार आने पर शीर्ष नेतृत्व के सामने वसुंधरा को सरेंडर करना पड़ेगा। जो वो किसी भी कीमत में वसुंधरा के लिए ठीक नहीं होगा। ये बात वसुंधरा अच्छी तरह जानती है। साथ ही अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में वसुंधरा की ताकत भी जाती रहेगी, अपने करीबियों को टिकट दिलाना भी आसान नहीं होगा। शायद इसीलिए बीजेपी शीर्ष नेतृत्व और अमित शाह ने वसुंधरा को फ्री हैंड छोड़कर अपना राजनीतिक भविष्य तय करने का फैसला उनपर ही छोड़ दिया है।