मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को जहां बहुमत मिला है। वहीं दूसरी तरफ सपा, बसपा, गोंगपा, सपाक्स, जैसी पार्टियों के हाल भी बहुत अच्छे नहीं रहे। इस चुनाव में नोटा को बड़ी संख्या में वोट मिले। हिंदी भाषी तीनों राज्यों में एक से दो प्रतिशत तक लोगों ने नोटा दबाया।
जिसके पीछे माना जा रहा है कि एससी एसटी एक्ट में बदलाव के चलते सवर्ण समाज में रोष था. सवर्ण समाज के लोगों ने उसी दौरान कहा था कि इस बार नोटा का बटन दबाया जाएगा. इन चुनावों में एक बार फिर नोटा की बहस को जिंदा कर दिया. क्योंकि नोटा ने इन चुनावों में कई राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा वोट पाया है.
राजस्थान
राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच शुरू में काटे की टक्कर दिख रही थी. लेकिन समय बीतेने के साथ ही तस्वीर भी साफ हो गई. कांग्रेस रूझानों में बहुमत का आकड़ा पार कर गई. लेकिन इसमें एक बात जो बेहद दिलचस्प था वो यह की बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में ज्यादा का अंतर नहीं था. बीजेपी को 38.8 फीसदी वोट मिला तो कांग्रेस को 39.2 फीसदी वोट मिला.
साथ ही इस राज्य में नोट को कुल 1.3 फीसदी वोट मिला है. जो कई पार्टीयों के वोट प्रतिशत से ज्यादा है. राजस्थान में नोटा को एनसीपी, एसपी, जेएसआर, बीवीएचपी, आरएलडी, बीटीपी, सीपीएम, एएएपी, से ज्यादा वोट मिला है. इन सभी पार्टीयों का वोट नोटा से कम है. राज्य में नोट को कुल 447133 वोट मिले है.
मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश में नोटा को भी कई पार्टियों से ज्यादा वोट मिला है. राज्य में नोटा को 1.5 फीसदी वोट मिला है. एसएचएस, बीएएसडी, बीएससीपी, एसपीएकेपी, एएएपी, एसपी, से ज्यादा वोट मिला है. वहीं बीजेपी को 41.3 फीसदी वोट मिला है जबकि कांग्रेस को 41.4 फीसदी वोट मिला है. राज्य में नोटा को 443331 वोट मिले है.
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में भी नोटा को 2.1 फीसदी वोट मिला है. एनसीपी, एसपी, एसएचएस, सीपीआई, एएएपी, जीसीपी, एपीओआई से ज्यादा वोट मिले है. राज्य में नोटा को 206151 वोट मिले है. वहीं राज्य में बीजेपी को 32.9 फीसदी तो कांग्रेस को 43.2 फीसदी वोट मिला है.
इन तीनों प्रदेशों में बीजेपी की हार का एक मुख्य कारण नोटा को भी माना जा रहा है. क्योंकि ऐसी कई सीटे थी जहां जीत और बार का अंतर काफी कम था. तो ऐसे में कहा जा सकता है कि नोटा ने बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया.
इन तीनों राज्यों में अभी भी गिनती जारी है. ये आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।