कड़क चाय में पारले-जी बिस्कुट भिगो कर खाने वाले सियासत के जादूगर हैं गहलोत
नई दिल्ली: कम ही लोगों को पता होगा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने जा रहे अशोक गहलोत का खानदानी पेशा जादूगरी है. उन्होंने राजनीति को अपना करियर बनाया मगर जादू दिखाना उन्हें पसंद रहा है. यह राजनीति के इस जादूगर का जादू ही कहा जाएगा कि पांच साल पहले राजस्थान से बाहर किए जाने के बावजूद जब सत्ता में वापसी का मौक़ा आया तो उन्हीं का जादू चला.
जादूगरी था खानदानी पेशा
राजस्थान वह प्रदेश है जो जातियों के भंवर में आजतक जकड़ा हुआ है. जातीय आन, बान और शान के लिहाज से राजपूत, ब्राह्मण, जाट और गुर्जर जातियों का प्रभुत्व वहां रहता है. अशोक गहलोत इन सबसे अलग पिछड़ी माली जाती से ताल्लुक रखते हैं. जोधपुर में 3 मई 1951 को जन्मे अशोक गहलोत के पूर्वजों का पेशा जादूगरी था. गहलोत के पिता स्व. लक्ष्मण सिंह गहलोत जादूगर थे. अशोक ने भी पिता से जादू सीखा और कुछ वक्त के लिए इस पेशे को अपनाया भी. लेकिन यह उनकी नियति नहीं थी. उन्हें तो सियासत के मैदान में रहकर मतदाताओं पर जादू करना था और वह इसमें जबरदस्त तरीके से कामयाब रहे हैं.
छात्र राजनीति से सीएम की कुर्सी तक
सियासत उन्होंने छात्र जीवन से ही रुख कर लिया था. साल 1973 से 1979 में वह कांग्रेस की स्टूडेंट विंग एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष रहे. गहलोत 1980 में पहली बार जोधपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद चार बार फिर उन्होंने जोधपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का परचम फहराया. लगातार शानदार प्रदर्शन का तोहफा उन्हें केंद्रीय मंत्री के तौर पर नवाजे जाने से मिला.
गहलोत को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी.वी.नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में जगह मिली. साल 1998 में जब कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को हराकर भैरो सिंह शेखावत सरकार को सत्ता से बेदखल किया तब हाईकमान ने अशोक गहलोत को पहली बार मुख्यमंत्री मनोनीत किया. उन्होंने पांच साल तक सफलतापूर्वक सरकार चलाई और जब 2008 में फिर कांग्रेस को राजस्थान की सत्ता मिली तो मुख्यमंत्री पद के लिए गहलोत ही पहली पसंद बने.
लगा था अब कभी राजस्थान में वापसी नहीं होगी
इधर 2013 में भाजपा की राजस्थान में वापसी के बाद गहलोत को पार्टी नेतृत्व ने राजस्थान से बाहर कर दिया था. राहुल गांधी युग की कांग्रेस में दस्तक के बीच राहुल ब्रिगेड के युवा चेहरे सचिन पायलट को सूबे की कमान सौंपी गयी. सचिन शिद्दत के साथ करीब पांच साल से राजस्थान में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने में जुटे हुए थे. इस बीच राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद गहलोत को अपने साथ जोड़ लिया.
जनार्दन द्विवेदी की जगह महासचिव संगठन की सबसे अहम् जिम्मेदारी से नवाज़ा. सियासत के जादूगर अशोक गहलोत ने नयी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाया. गुजरात चुनाव में भाजपा ने भले रोते-पीटते सरकार बचा ली मगर कांग्रेस ने मोदी और शाह की जोड़ी के पसीने छुड़वा दिए थे. इस चुनाव में कांग्रेस की मजबूत स्थिति के पीछे गहलोत की रणनीति और मेहनत को जिम्मेदार माना गया. राहुल के विश्वासपात्र बन चुके अशोक गहलोत के हाथ में ही गुजरात चुनाव की कमान थी.
जादू गहलोत का ही चला राहुल पर
इस सबके बावजूद माना जा रहा था कि राजस्थान में अगर कांग्रेस जीती तो कमान सचिन पायलट के हाथ में रहेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जादू गहलोत का ही चला. राहुल गांधी ने 2019 की बड़ी लड़ाई के मद्देनजर अशोक गहलोत को ही तीसरी बार मुख्यमंत्री का ताज देना बेहतर समझा जा रहा है. यह सचिन पायलट समर्थकों के लिए किसी झटके से कम नहीं है क्योंकि गहलोत को राज्य की पॉलिटिक्स से एलिवेट करके केंद्र में भेजे जाने की बात एक स्थापित सत्य मानी जा रही थी.
बेहद सजग रहते हैं छवि को लेकर
बेदाग़ छवि के स्वामी अशोक गहलोत बेहद कड़क चाय पीने के शौक़ीन माने जाते हैं. चाय में पारले-जी बिस्किट डुबोकर खाना उन्हें बेहद पसंद है ,उनके करीबी बताते हैं कि गहलोत की कार में पारले जी हमेशा रखा होता है, जोकि दशकों से लोकप्रिय बेहद सस्ता ब्रांड है. गहलोत गाडी रुकवाकर सड़क किनारे किसी भी दुकान पर चाय बनवाकर पी लेते हैं. यह उनकी सहजता और सादगी की मिसाल है लेकिन बेदाग़ छवि के स्वामी अशोक गहलोत अपनी ब्रांड इमेज को लेकर बेहद सजग रहते हैं.
सीपी जोशी राजस्थान में उनके सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंदी कहे जाते हैं, लेकिन वैभव गहलोत के प्रदेश कांग्रेस कमेटी में शामिल होने का उन्होंने तब तक इन्तजार किया जब सीपी जोशी द्वारा ही वैभव को शामिल करने का प्रस्ताव पीसीसी में पेश करने के हालात नहीं बन गए. वैसे उनके करीबी यह भी कहते हैं कि गहलोत जितनी कड़क चाय पीते हैं अपने राजनीतिक दुश्मनों को लेकर भी वो उतने ही कड़क हैं. सहजता और सरलता एक पल के लिए उनसे दूर नहीं होती मगर गहलोत के दिल में क्या है इसका अंदाजा उनके करीब से करीब आदमी को भी नहीं लग पाता.