नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश में पिछले कुछ दिन से जमकर तोड़-फोड़ की जा रही है. 22 फरवरी से लगातार घर और गाड़ियां जलाने की खबरें आ रही हैं. हालांकि ये आग थमी नहीं और जा पहुंची वहां की सरकार तक. लोगों का प्रदर्शन इतना हिंसक हो गया कि राज्य के उप मुख्यमंत्री चौना मैन के घर पर पथराव भी हुआ है जिसके बाद इसे आग के हवाले कर दिया गया. ऐसे में अब लोगों के लिए जानना जरुरी हो गया है कि आखिर इस विवाद की जड़ पीआरसी है क्या? तो आइए जानते हैं…
क्या है पीआरसी?
इस विरोध की जड़ में अरुणाचल प्रदेश के दो ज़िले हैं, नामसाई और चांगलांग. इन ज़िलों में कुछ समुदाय रहते हैं जिन्हें अरुणाचल का स्थाई निवासी नहीं माना गया है. इसमें गैर-अरुणाचली समुदाय भी शामिल हैं. सरकार 6 आदिवासी जातियों को वहां का स्थाई निवासी बनाना चाहती है. ये जातियां हैं देओरी, सोनोवाल, कचारी, मोरान, आदिवासी और मिशिंग. सरकार इन्हें परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट यानी पीआरसी देना चाहती है. सरकार की बनाई कमिटी ने ऐसा करने की सिफारिश भी की है.
इसलिए पीआरसी के विरोध में अड़े लोग
अरुणाचल के स्थानीय लोगों और छात्र संगठनों और लगा कि अगर ऐसा हुआ तो उनके हितों की अनदेखी हो सकती है. इस पैनल की सिफारिशों में बदलाव के लिए ही विरोध किया जा रहा है. शुरुआत में इन संगठनों ने शांतिपूर्ण विरोध किया लेकिन जब सफल नहीं हुए तो इस फैसले का विरोध करने के लिए बंद बुलाया गया. वहीं उप-मुख्यमंत्री को निशाने पर इसलिए भी लिया गया क्योंकि उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि पीआरसी आदिवसियों को नए साल का तोहफा होगा. इससे स्थानीय लोग काफी नाराज हुए. अब इसकी आंच उन तक पहुंच चुकी है.
नॉन नेटिव लोग स्थाई नहीं
उन्होंने कहा है कि सबसे बात करके एक सौहार्दपूर्ण नतीजे पर पहुंचा जायेगा. गैर अरुणाचली समुदायों को पीआरसी देने के फैसले को उनके विरोधी तुष्टीकरण का हथकंडा बता रहे हैं. इतना हंगामा हो चुका है. अब सरकार को लगा है कि लोगों की मांगें सही है. ये फैसला लिया गया है कि नॉन नेटिव लोगों को स्थाई निवासी नहीं बनाया जायेगा.