नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के लिये मतदान की तारीखों का एलान हो चुका है। इसके साथ ही इस चर्चा ने भी जोर पकड़ लिया है कि 11 अप्रैल से 19 मई तक होने वाले चुनाव में कितने दागियों को वोट देकर जनता संसद के निचले सदन में पहुंचायेगी।
बात करें 2014 की, तो 543 सांसदों में से 185 सांसद ऐसे रहे, जिनपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह संख्या कुल सांसदों में से 34 फीसदी होती है। दागी सांसदों पर छोटे-मोटे केस नहीं दर्ज हैं। उन पर हत्या, हत्या के प्रयास, बलवा और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के गंभीर आरोप हैं।
सबसे ज्यादा दागी सांसदों के चुनाव की बात की जाए तो 2014 में महाराष्ट्र के वोटरों ने 30 ऐसे सांसदों को चुनकर लोकसभा भेजा था। वहीं, उत्तर प्रदेश से 28 और बिहार से 27 दागी सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे थे।
दागियों को संसद और विधानसभाओं में पहुंचने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वैसे पहल की है। मसलन उसने फैसला सुनाया है कि अगर किसी को दो साल की सजा हो गयी, तो वह चुनाव नहीं लड़ सकेगा। साथ ही उसने मोदी सरकार को आदेश दिया था कि दागी सांसदों पर मुकदमों का फैसला करने के लिये सभी जिलों में विशेष अदालतें बनायी जाएं। ऐसी अदालतों का गठन हो चुका है और दागी माननीयों के खिलाफ गंभीर मामलों की सुनवाई भी चल रही है।
दागियों को विधायिकाओं में पहुंचने से रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने जो दो साल की सजा का नियम बनाया है उसका सबसे बड़ा खामियाजा राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को उठाना पड़ा है। लालू को चारा घोटाले के मामलों में दो साल से ज्यादा की सजा हुई है और वह जेल में हैं। लालू ऐसे में चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।