इंदिरा और सोनिया का इतिहास कहता है राहुल ने बड़ा दांव खेला है दक्षिण में

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी शायद चुनाव के आखिरी दिन तक यही कहती रहेगी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी में हार के डर से दक्षिण की तरफ भाग गए। और, शायद बतौर राजनीतिक प्रतिद्वंदी उसे यह कहना भी चाहिए, मगर कांग्रेस की निगाह से राहुल का केरल की वायनाड सीट से भी ताल ठोकना एक बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। वो इसलिए क्योंकि जब-जब गांधी परिवार का कोई सदस्य दक्षिण भारत से चुनाव लड़ा है तो उसके असर के तौर पर कांग्रेस की सीटें बढ़ी हैं। और, राहुल भी उसी इतिहास को दोहराना चाहते हैं।
घोषणा पत्र जारी करने वाले दिन हुई प्रेस वार्ता में भी राहुल की दोहरी उम्मीदवारी को लेकर सवाल उठा था। राहुल गांधी ने यही जवाब दिया था कि वो दक्षिण भारत के लोगों को यह अहसास करवाना चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी उनके उतनी ही नज़दीक है जितना शेष भारत के। राहुल ने मोदी सरकार पर दक्षिण की उपेक्षा का आरोप भी अपने जवाब में जड़ा था। कांग्रेस की रणनीति को इतिहास के आईने में देखें तो राहुल की वायनाड से उम्मीदवारी पार्टी के लिए फायदे का सौदा नज़र अति है।
राहुल से पहले उनकी मां सोनिया गांधी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1999 में अमेठी के साथ कर्नाटक की बेल्लारी सीट से भी लड़ा था। उनके बेल्लारी से लड़ने का असर यह रहा कि कर्नाटक में कांग्रेस की सीटें 5  से बढ़कर 18 हो गयी थीं। इसी तरह राहुल की दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 में रायबरेली के अलावा वर्तमान तेलंगाना की मेडक सीट से चुनाव लड़ा था। इंदिरा ने 1978 में कर्णाटक की चिकमंगलूर लोकसभा सीट से भी उपचुनाव में जीत हासिल की थी। इंदिरा गांधी की दक्षिण में मौजूदगी का असर कर्नाटक में तो इस कदर दिखा की सभी 27 सीटों कांग्रेस ने जीत हासिल की।
राहुल जिस वायनाड लोकसभा सीट से उतरे हैं वो केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के बॉर्डर पर है। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि इसका असर तीनों राज्यों पर पड़ेगा, यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस ने 2014 की भाजपा की रणनीति को भी अपनाया है जब नरेंद्र मोदी ने वडोदरा की सेफ सीट और वाराणसी से चुनाव लडलड़ा।  मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने का असर इतना हुआ की पूर्वांचल में दूसरी पार्टियां साफ हो गईं।  फूलपुर जैसी मुश्किल सीट पर भी भाजपा बड़े अंतर से जीती थी।
कांग्रेस ने 2009 में अकेले आंध्र प्रदेश से 34 सीटें जीती थीं। लेकिन अब आंध्र कांग्रेस उसका किला नहीं रहा है। इसकी भरपाई कांग्रेस केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से करना चाहती है। 1996 में देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले 22 साल में कोई भी दक्षिण भारतीय प्रतिनिधि केंद्र की राजनीति में सर्वोच्च पर नहीं पहुंचा है। इस बार कांग्रेस राहुल के सहारे दक्षिण भारतीयों को ये सपना दिखा रही है। राहुल का दो सीटों से लड़ना गांधी परिवार के दक्षिण में इतिहास की पुनरावृत्ति ही कही जा सकती है। परिणाम तो 23 मई को ही पता चलेगा।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest Articles