मैनपुरी: 19 अप्रैल को गठबंधन की संयुक्त रैली का चौथा पड़ाव होगा। यही वह बड़ा मौका होगा जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती करीब 24 साल बाद एक मंच होंगे। मायावती यहां से मुलायम के लिए मैनपुरी की जनता से वोट मांगेंगी। इसके गवाह बनेंगे गठबंधन में शामिल रालोद अध्यक्ष चौ. अजित सिंह। इसके सूत्रधार बने हैं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव। मुलायम सिंह यादव ने पांचवी बार यहां से नामांकन किया है। इस बार वह सिर्फ सपा ही नहीं बल्कि बसपा के भी उम्मीदवार हैं।
ऐसे में जब मंच पर मुलायम और मायावती लम्बे अन्तराल बाद एक साथ मंच साझा करेंगे तो मैनपुरी की जनता को भी उत्सुकता और नजर होगी कि दोनों (मुलायम-मायावती) नेता क्या संदेश देते हैं। कल की रैली में मायावती का भाषण का अंदाज भी जुदा होने की उम्मीद है और वह चुनाव आयोग द्वारा 48 घण्टे लगे प्रतिबंध के बाद अपने समर्थकों से मुखातिब होंगी।यूं तो मैनपुरी मुलायम पर हमेशा खूब वोट लुटाती रही है। उनके गृह जिले इटावा की जसवंतनगर विधानसभा सीट भी इसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है जिस पर मुलायम का जादू चलता है। मुलायम मैनपुरी से 1996 से लेकर 2014 तक चार बार जीत चुके हैं। दो बार 2004 और 2014 में उन्होंने यहां से जीतने के बाद इस्तीफा दिया।
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मगर सीट परिवार में ही रही। यूपी की राजनीति में ढाई दशक पहले बसपा संस्थापक कांशीराम ने अपने मिशन 85 बनाम 15 फीसद की लड़ाई को सफल बनाने के लिए दलित, पिछड़े और मुस्लिमों की एकजुटता के मद्देनजर सपा से गठबंधन किया था। तब 1993 में लखनऊ मे बेगम हजरत महल पार्क में कांशीराम और मायावती के साथ मुलायम मंच पर आये थे। इस गठबंधन ने यूपी की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन के सहारे सत्ता में आयी भाजपा के रथ को रोक दिया। तब सपा-बसपा गठबंधन ने 4 दिसम्बर 1993 को यूपी में सरकार बना ली और मुलायम मुख्यमंत्री बने। उसके पहले मुलायम ने इटावा में हुए लोकसभा के उपचुनाव में कांशीराम को सांसद निर्वाचित कराने में अहम भूमिका निभाई।
मगर 18 महीने में ही यह गठबंधन टूट गया। मगर तब तक बसपा राज्य में मजबूत हो चुकी थी। मायावती को भाजपा के सहारे यूपी में मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। फिर देखते-देखते मायावती ने 2007 में यूपी में पूर्ण बहुमत की बसपा की सरकार बनायी तो 2012 में समाजवादी पार्टी ने भी पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों को झटका मिला। केन्द्र से राज्य दोनों जगह भाजपा सरकार बनने और अपना राजनीतिक कद घटता देख सपा और बसपा ने एक बार फिर गठबंधन बनाया है।
इस बार इसमें रालोद भी शामिल है। लोकसभा चुनाव में इसी गठबंधन के जरिए महापरिवर्तन की बात अखिलेश, मायावती और चौ. अजित सिंह कह रहे हैं। रणनीतिक तौर पर ही गठबंधन के नेताओं ने पश्चिम से लेकर पूर्वाचल तक संयुक्त रैलियों का फैसला लिया। इसकी शुरूआत सहारनपुर के देवबंद से हुई। दूसरी रैली बदायूं में हुई। मगर तीसरी रैली जो आगरा में प्रस्तावित थी, चुनाव आयोग के प्रतिबंध के कारण मायावती उसमें नहीं शामिल हो सकीं।