वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त या ‘अक्षय तृतीया’ के रूप में मनाया जाता है। माता पार्वती ने इसका महत्व समझाते हुये कहा कि तृतीया तिथि मानव कल्याण हेतु अमोघ फल देनेवाली है। ज्योतिष में इसे विजया तिथि में नाम से जाना जाता है। गणना के मुताबिक इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र पड़ता है तब इसका फल दोगुना हो जाता है।
माता पार्वती कहती हैं कि कोई भी स्त्री यदि वह सब प्रकार का सुख चाहती है उसे यह व्रत करते हुए किसी भी प्रकार का सेंधा आदि व्रती नमक भी नहीं खाना चाहिए। स्वयं माता ने धर्मराज को समझाते हुए कहा है, कि यही व्रत करके मै भगवान शिव के साथ आनंदित रहती हूं। कन्याओं को भी उत्तम पति की प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए।
जानिए कुछ महत्वपुर्ण जानकारी-
– आज ही के दिन जैन के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी भगवान ने 13 महीने का कठीन निरंतर उपवास (बिना जल का तप) का पारणा (उपवास छोडना) इक्षु (गन्ने) के रस से किया था। और आज भी बहुत जैन भाई व बहने वही वर्षों तप करने के पश्चात आज उपवास छोड़ते हैं और नये उपवास लेते हैं। और भगवान को गन्ने के रस से अभिषेक किया जाता है।
-आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था।
-महर्षी परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था।
-माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था।
-द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था।
– कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था।
– कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था।
-सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था।
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-ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था।
– प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है।
– बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है। अन्यथा साल भर वो बस्त्र से ढके रहते है।
– इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।
– अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।।