राजसत्ता एक्सप्रेस। भारतीय सिनेमा के शानदार कलाकार इरफान खान महज 54 साल की उम्र में दुनिया का अलविदा कह गए। उनकी निधन की खबर ने न सिर्फ बॉलीवुड बल्कि हर आम से लेकर खास को गमगीन कर दिया है। इरफान ने बुधवार को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में आखिरी सांस ली, वो लंबे समय से कैंसर से जंग लड़ रहे हैं और आखिर में वो ये जंग हार गए। मंगलवार को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी, तुरंत उन्हें आईसीयू में भर्ती करवाया गया और बुधवार को वो दुखद समाचार सुनने को मिला, जो कभी कोई सुनना नहीं चाहता था। जैसे ही मंगलवार को उनके ICU में शिफ्ट होने की बात सामने आई, तभी से हर कोई उनकी सलामती की दुआ मांग रहा था, लेकिन क्या पता था भगवान को भी ऐसे चाहने वालों की तलाश है और उन्होंने लाखों दिलों पर राज करने वाले इरफान को अपने पास बुला लिया
किस बीमारी ने ली इरफान की जान
ये सब जानते हैं कि इरफान बीमार थे। पिछले ढाई सालों से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि आखिर वो कौन सा कैंसर था, जिसने खुशमिजाज इरफान की सांसें छीन ली। इसके बारे में खुद इरफान ने बताया था कि वो एक न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर नामक दुर्लभ बीमारी का शिकार हो गए हैं। ये ट्यूमर शरीर के अलग-अलग पार्ट्स को टारगेट करता है। इस बीमारी के इलाज के लिए ही वो साल 2017 में विदेश गए थे। तब से ही हर कोई उनके जल्द स्वस्थ्य होने की कामना कर रहा था।
कैसे होती है इस दुर्लभ बीमारी की शुरुआत
न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर की शुरुआत शरीर के किसी भी हिस्से में ट्यूमर बनने से होती है। तब किसी हेल्दी डीएनए की कोशिका क्षतिग्रस्त होती है, तो ट्यूमर बनना शुरू होता है। इस स्थिति में कोशिका का आकार बढ़ने लगता है, ये इतना बढ़ जाता है कि इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। ये ट्यूमर कैंसर युक्त भी हो सकता है और नहीं भी। ट्यूमर धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ा करने लगता है और शरीर के दूसरे हिस्सों पर भी नुकसान पहुंचाने लग जाता है। अगर इस बीमारी का इलाज शुरू में ही नहीं किया गया, तो ये कैंसर का कारण भी बन जाता है। हालांकि, जो ट्यूमर कैंसरयुक्त नहीं होते हैं, उनके इलाज के दौरान शरीर से निकाल दिया जाता है।
क्या हैन्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर?
बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान हैन्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर से जान गई है। जिसे एनईटी भी कहते हैं। ये ट्यूमर कुछ खास कोशिकाओं में बनना शुरू होता है। जो हार्मोन पैदा करने वाली इंडोक्राइन कोशिका के साथ-साथ नर्व कोशिका को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है। ये दोनों शरीर की अहम कोशिकाएं होती हैं, क्योंकि शरीर की कई गतिविधियों का नियंत्रण यही करती हैं। हैन्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर बनता है, तो इस कैंसरयुक्त ही माना जाता है।
कहते हैं कि हैन्यूरोइंडोक्राइन के डेवलप होने में सालों लग जाते हैं। ये धीरे-धीरे शरीर में बढ़ता है। ये भी कहते हैं कि कुछ एनईटी की ग्रोथ काफी तेज होती है। ये शरीर के किसी भी पार्ट में विकसित हो सकता है। यानी फेफड़े, पैंक्रियाज, गैस्ट्रो कहीं भी। ये शरीर के हार्मोन पैदा करने वाले हिस्सों में भी हो सकता है। बता दें कि न्यूरो एंडोक्राइन ग्लैंड हमारे शरीर में हार्मोन रिलीज का काम करती है। ऐसे में जब ये जरूरत से ज्यादा रिलीज होने लगता है, तो इस स्थिति में वो ट्यूमर बन जाता है।
इनका सबसे आसान शिकार फेफड़े होते हैं। 30 फीसदी एनईटी रेस्पिरेटरी सिस्टम पर अटैक करती है। इसकी सिस्टम के माध्यम से फेफड़ों को ऑक्सीजन प्राप्त होती है, एनईटी की वजह से फेफड़ों में इंफेक्शन बढ़ने लगता है। ये शुरुआती स्टेज में पता नहीं लग पाता, इसके कोई साफ लक्षण नहीं होते। डॉक्टर भी ट्यूमर को बहुत खतरनाक मानते हैं, क्योंकि इसमें जान बचने की संभावना न के बराबर होती है। अधिकतर मामलों में ये खतरनाक ही होते हैं। वैसे सामन्य तौर पर ये निर्लभ बीमारी 60 की उम्र के बाद वाले लोगों में दिखती है, लेकिन इरफान को महज 50 की उम्र में ही इस बीमारी ने अपने चपेट में ले लिया था और आज यानी 29 अप्रैल को इसने उनकी सांसें भी छीन ली।