मुंबई में प्लाज्मा थेरेपी का पहला प्रयोग फेल, कोरोना संक्रमित मरीज की मौत; ये थेरेपी हो सकती है जानलेवा

राजसत्ता एक्सप्रेस। कोरोना के इलाज में जिल प्लाज्मा थेरेपी पर भरोसा जताया जा रहा था, उसने सबके सपनों पर पानी फेर दिया है। मुंबई में प्लाज्मा थेरेपी का पहला प्रयोग फेल हो गया है। जहां जिस कोरोना संक्रमित पहले मरीज पर इस थेरेपी का प्रयोग किया गया था, उसकी बुधवार को मौत हो गई है। जिस कोरोना संक्रमित 52 वर्षीय मरीज की मौत हुई है, वो मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती था। अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक, देरी से मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे कोरोना की वजह से निमोनिया हो गया था, नतीजतन उसकी स्थिति और बिगड़ती गई।

मुंबई में प्लाज्मा थेरेपी का पहला प्रयोग फेल

देश में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस से प्रभावित महाराष्ट्र हैं, जहां मुंबई की हालत बेहद खराब है। फिलहाल प्लाज्मा थेरेपी पर थोड़ा भरोसा जताते हुए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल प्रयोग के रूप में किया जा रहा है, लेकिन मुंबई के इस मरीज पर ये प्रयोग असफल साबित हुआ है। इस मरीज को 25 अप्रैल को लीलावती अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां इसकी कोरोना की जांच पॉजिटिव निकली। इलाज के दौरान मरीज को प्लाज्म चढ़ाया गया था। अस्पताल के सीईओ डॉक्टर वी. रविशंकर ने बताया कि कोरोना संक्रमित मरीज को 200 एमएल प्लाज्मा चढ़ाया गया था। आगे भी उनसे और प्लाज्मा चढ़ाना था, लेकिन उसकी स्थिति देखकर ऐसा नहीं किया गया। अब मुंबई के इस मरीज की मौत के बाद प्लाज्मा थेरेपी पर भी शंका के बादल छा गए हैं। डॉक्टरों का भी कहना है कि अब तक प्लाज्मा थेरपी से कोई मानक इलाज नहीं है, ये केवल ट्रायल की तरह ही देखा जाए।

प्लाज्मा थेरेपी को केवल ट्रायल के तौर पर देखें: स्वास्थ्य मंत्रालय

बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी प्लाज्मा थेरेपी के केवल ट्रायल के तौर पर देखने के लिए कहा था। मंत्रालय ने आगाह करते हुए ये भी कहा था कि ये थेरेपी केवल रिसर्च और ट्रायल का हिस्सा है, अगर सही से गाइडलाइंस का पालन न किया गया, तो ये थेरेपी जानलेवा भी साबित हो सकती है।

इसको लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने अपने बयान में कहा था कि कोरोना के इलाज को लेकर अभी दुनिया में कोई भी अप्रूव थेरेपी नहीं है, यहां तक की प्लाज्म थेरेपी पर भी कोई विचार नहीं किया गया है। ये केवल एक प्रयोग मात्र के लिए इस्तेमाल की जा रही है। अभी तक इस बात के भी कोई सुबूत नहीं मिले हैं कि इसका कोरोना के ट्रीटमेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं।

प्लाज्मा कैसे हो सकता है खतरनाक?

दरअसल, डोनर के खून से प्लाज्मा को अलग किया जाता है। इस प्लाज्मा में एंटीबॉडी होते हैं, जो शरीर को किसी वायरस से लड़ने में मदद करते हैं। इसपर जयपुर स्थित सवाई मानसिंह अस्पताल में मेडिसिन डिपार्टमेंट के एक डॉक्टर का कहना है, ‘ब्लड और ब्लड कॉम्पोनेन्ट को चढ़ाने के खुद के कुछ रिएक्शन के चांसेस भी होते हैं। आपने सुना होगा कि खून चढ़ाते वक्त किसी व्यक्ति की मौत हो गई।’ बता दें कि केवल भारत में ही नहीं, अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई हिस्सों में भी प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल हो रहा है। इस थेरेपी का इस्तेमाल पहले भी कई बीमारियों के इलाज में किया जा चुका है। साल 2014 में आए खतरनाक इबोला वायरस के इलाज में भी इसका इस्तेमाल हुआ था। इससे पहले 2009 में एचवनएनवन वायरस और 2003 की सार्स महामारी के वक्त भी प्लाज्मा थेरेपी पर भरोसा जताया गया था, लेकिन कोरोना के इलाज में ये कितनी कारगर साबित होगी, ये कहना अभी जल्दबाजी है।

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