नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में पिछले काफी समय से जजों की नियुक्ति को लेकर चल रहा विवाद अब खत्म होता दिख रहा है. सूत्रों की मानें तो अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की उन सिफारिशों को मान लिया है, जिसमें उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के.एम. जोसेफ को सबसे बड़ी अदालत में जिम्मेदारी दी जाने की बात कही थी. गौरतलब है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के. एम. जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति का मामला कई महीनों से लटका हुआ था.
सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रही इस खींचतान खत्म !
सरकार ने कॉलेजियम के तहत की गई सुप्रीम कोर्ट की जो मांग मानी है उसके तहत उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ अब सुप्रीम कोर्ट के जज बन जाएंगे. जस्टिस जोसेफ के अलावा मद्रास हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी और ओडिशा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस विनीत सरन को भी सुप्रीम कोर्ट का जज बनाए जाने की मांग मान ली गई है. इनकी नियुक्ति के लिए ज़रूरी प्रेसिडेंशियल वारंट की प्रक्रिया की भी शुरुआत कर दी गई है.
सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच चल रही इस खींचतान के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस जोसेफ का नाम इस साल 10 जनवरी को भेजा गया था. इनके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता इंदू मल्होत्रा का भी नाम भेजा गया था. सरकार ने इंदू मल्होत्रा के नाम पर तो सहमति जताई थी लेकिन जस्टिस जोसेफ का नाम 26 अप्रैल को वापस कर दिया था. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अप्रैल में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने कुछ कारणों की वजह से जस्टिस जोसेफ के नाम पर फिर से विचार करने की बात कहकर उनका नाम लौटा दिया था.
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दी थी ये दलीलें-
दरअसल, सरकार ने केएम जोसेफ के नाम की सिफारिश कॉलेजियम के पास वापस भेजते हुए जो चिट्ठी लिखी थी उसमें वजह बताते हुए कहा था, “हाई कोर्ट के जजों में वरिष्ठता सूची में जोसफ का नंबर 42वां हैं. उन्हें दरकिनार कर ये सिफारिश भेजी गई. इस समय 11 हाई कोर्ट चीफ जस्टिस उनसे वरिष्ठ हैं. उन्हें भी दरकिनार किया गया.”
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सरकार का कहना था कि केरल हाई कोर्ट से आने वाले एक जज पहले से सुप्रीम कोर्ट में हैं. कलकत्ता, राजस्थान, गुजरात, झारखंड जैसे कई हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में कोई जज नहीं. मूल रूप से केरल हाई कोर्ट के जज रहे कई लोग देश भर में कई जगहों पर जज हैं. अभी 4 हाई कोर्ट चीफ जस्टिस हैं, जो केरल से हैं. सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल कोई भी अनुसूचित जाति/जनजाति का जज नहीं.
इन दलीलों के बाद भी जब सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस जोसेफ का नाम दोबारा भेजा तो सरकार को उनके नाम पर सहमति जतानी पड़ी. कानून के जानकारों को मानना है कि सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था.
कौन है जस्टिस जोसेफ?
आपको बता दें कि जस्टिस जोसेफ जून महीने में साठ साल के हो गए और वो जुलाई 2014 से उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश है. इसके पहले उन्हें 14 अक्तूबर, 2004 को केरल हाई कोर्ट का स्थाई न्यायाधीश बनाया गया था. जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस लोकूर और जस्टिस कुरियन सहित कोलेजियम के सदस्यों ने जस्टिस जोसेफ के नाम को मंजूरी देने में हो रहे देरी पर चिंता जाहिर की थी. गौरतलब है कि जस्टिस जोसेफ उस पीठ के प्रमुख थे जिसने 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था. सूत्रों के हवाले से आ रही इस खबर के बाद टकराव खत्म होने की उम्मीद जताई जा रही है.