नई दिल्ली: केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरा है. चुटीले बयानों और बेबाक अंदाज वाले नकवी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री रहे. वह दो किताबें स्याह और दंगा भी लिख चुके हैं. मुख्तार अब्बास नकवी का जन्म 15 अक्टूबर 1957 में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरा करने के बाद राजनीति में सक्रिय हो गये. अपने प्रारम्भिक राजनीतिक जीवन में नकवी समाजवादी राजनीतिक धारा से प्रभावित थे. वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले प्रसिद्ध समाजवादी नेता राजनारायण और जनेश्वर मिश्र के करीबी थे. इमरजेंसी के दौरान वे जेल में भी रहे. आपातकाल के बाद वे राष्ट्रवादी विचारधारा के संपर्क में आये और भाजपा में शामिल हो गये.
भाजपा में शामिल होने के बाद वे पहले मऊ जिले की सदर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिली. नकवी संगठन में कई पदो पर रहे. 1998 में रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए, ये पहली बार हुआ था कि कोई मुस्लिम चेहरा भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनकर पहली बार संसद पहुंचा था.
मुख्तार अब्बास नकवी सरकार औऱ संगठन में कई पदों पर रहे. वर्तमान में वे मंत्री के साथ राज्यसभा में सदन के उपनेता भी हैं. नकवी संसदीय मामलों पर अच्छी पकड़ रखते हैं. वह विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ अच्छे संबंध एवं समन्वय के लिए भी जाने जाते हैं.
मुख्तार अब्बास नकवी भाजपा के विश्वसनीय अल्पसंख्यक चेहरा हैं. आधुनिक एवं राष्ट्रवादी विचारधारा से ओत-प्रेत नकवी अपने व्यक्तिगत जीवन में काफी उदार हैं. नकवी को 17 साल की उम्र में आपातकाल के दौरान महाराष्ट्र के नैनी सेंट्रल जेल में उनकी राजनीतिक गतिविधियों के चलते बंद कर दिया गया था. एक छात्र नेता के रूप में, उन्होंने जनता पार्टी की गतिविधियों में भी भाग लिया था।
नकवी ने 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिए चुनाव लड़ा था लेकिन सफन नहीं हो सके थे. उन्होंने 1980 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में भी चुनाव लड़ा.
वह 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों और संसदीय मामलों के राज्य मंत्री बने। वह 2016 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे. 12 जुलाई 2016 को नजमा हेपतुल्ला के इस्तीफे के बाद, उन्हें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिला था.