तो अब राबर्ट वाड्रा से भी माफ़ी मांग लेनी चाहिए केजरीवाल को!

पंकज शुक्ला। अरविन्द केजरीवाल अगर चाहते हैं कि 2019 के रण में विपक्षी गोलबंदी का हिस्सा बने तो उन्हें राबर्ट वाड्रा से मांगनी पड़ेगी. नरेंद्र मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए राहुल किसी से भी मिलने को तैयार दिखते हैं मगर केजरीवाल से नहीं. इसकी वजह केजरीवाल के वो पुरानी ‘हिट एन्ड रन’ पॉलिटिक्स मानी जा रही है, जिसका शिकार उन्होंने गांधी परिवार दामाद वाड्रा को भी बनाया था.

देश में नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जो भी लामबंदी हो रही है उसकी धुरी कांग्रेस है और सबसे बड़ा सियासी दल होने के नाते रहना भी उसी को है. बिना किसी अहम् और अहंकार के तमाम क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों से कांग्रेस अध्यक्ष और सोनिया गांधी हाथ मिला रहे हैं. राहुल-सोनिया छोटे से छोटे क्षेत्रीय दल के लिए भी उपलब्ध हैं. बस उद्देश्य एक ही है कि मोदी को सत्ता से हटाना है. मगर, पूरी लामबंदी में आम आदमी पार्टी की हालत कांग्रेस खेमे में अछूत जैसी बनी हुई है. आप दिल्ली में सरकार चला रही है. दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर उसका असर है और पंजाब में तो चार सांसद भी उसके जीत चुके हैं. वहीं अगर नरेंद्र मोदी से सीधे-सीधे सबसे बड़ा मुचैटा लेने वाला कोई नेता अगर है तो केजरीवाल ही हैं.

जाहिर है मोदी विरोधी राजनीति में उनका स्थान बड़ा है. लेकिन राहुल उनसे बात करने को ही तैयार नहीं हैं. हाल में राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना था. आप नेता संजय सिंह मीडिया में बोलते रह गए कि अगर राहुल गांधी सीधे अरविन्द केजरीवाल से बात करें तो उनकी पार्टी कांग्रेस प्रत्याशी को वोट दे देगी. रणनीति के नाम पर काफी आलोचना भी हुई मगर राहुल ने केजरीवाल से मिलना ठीक नहीं समझा. उनकी तरफ से यही सन्देश रहता है आप और उसके नेता केजरीवाल के बारे में पार्टी की दिल्ली यूनिट फैसला लेगी. केजरीवाल या किसी दुसरे से भी दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ही मिलेंगे.

अब समस्या यह है कि मोदी के मामले में केजरीवाल के समर्थक अपने नेता को सबसे बड़ा चेहरा मानते हैं। राहुल गांधी का रुख एक तरह से उनके लिए अपमानजनक है. जबकि ममता बनर्जी से लेकर चंद्र बाबू नायडू तक, विपक्षी गोलबंदी में लगा हर बड़ा नेता केजरीवाल से मुलाकात में गुरेज नहीं रख रहा. कांग्रेस के गलियारों में चर्चा रहती है कि तेजस्वी यादव से लेकर ममता बनर्जी तक ने राहुल गाँधी से केजरीवाल से सीधे जुड़ने का आग्रह किया है. पार्टी नेताओं के मुताबिक़ राहुल की समस्या केजरीवाल के पिछले ‘कर्म’ हैं. आज से पांच-छह साल पहले जब वह बेईमान नेताओं की लिस्ट जारी किया करते थे और जिसे चाहे उसे पूरे दावे और कथित सुबूतों के साथ बेईमान ठहराते थे. उस दौर में उन्होंने राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा को भू-माफिया सहित भ्रष्टाचार का प्रतीक बताने में कोई कसर नहीं रखी थी. हालांकि वाड्रा ने उन्हें बाकी नेताओं की तरह अदालत में नहीं घसीटा मगर राहुल और खासतौर पर प्रियंका अपने पति पर केजरीवाल के हमले और उनकी भाषा भूले नहीं हैं. यही वजह है कि जैसे ही केजरीवाल का नाम आता है गांधी परिवार हाथ खींच लेता है. क्योंकि वाड्रा पर आरोपों के चलते परोक्ष रूप से गांधी परिवार पर हमले हुए थे.

वरिष्ठ पत्रकार आशीष मिश्र कहते हैं -वाड्रा के अलावा कांग्रेस केजरीवाल को विश्वसनीय भी नहीं मानती. पहली बार दिल्ली में आप की सरकार को समर्थन देकर कांग्रेस का अनुभव बहुत ही खराब रहा. कांग्रेस के बड़े नेताओं का एक बड़ा वर्ग तो यह भी कहता है कि केजरीवाल का कोई भरोसा नहीं. वह तो मोदी तक से हाथ मिला सकते हैं. बहरहाल, इधर एक साल में केजरीवाल ने जिस तरह से लिखित माफी मांग-मांगकर अपने खिलाफ दर्ज मानहानि के मुक़दमे वापस लिए हैं उससे उनका एक नया रूप जनता के सामने जाहिर हुआ है.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और अरुण जेटली के अलावा वो कांग्रेस के दिग्गज कपिल सिब्बल से भी लिखित माफ़ी मांग चुके हैं. केजरीवाल ने तो अकाली दल के उन विक्रम सिंह मजीठिया तक से माफ़ी मांग ली जिनपर आरोप लगाकर उन्होंने पंजाब में पूरा कैंपेन चलाया था. इसको लेकर आप की पंजाब इकाई में बगावत हो गयी थी. ऐसे में वृहतर उद्देश्य के लिए एक माफ़ी और सही. ठीक है वाड्रा ने बाकी की तरह उन्हें अदालत में नहीं घसीटा मगर मोदी हटाओ अभियान को अगर बल मिलता है तो केजरीवाल खेद जाते लें. क्योंकि कोई आरोप तो उनके खिलाफ भी साबित नहीं कर पाएं हैं केजरीवाल.यह राजनीतिक चिंतकों में चर्चा रहती है, बाकी फैसला तो केजरीवाल को ही लेना है.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest Articles