नई दिल्ली: धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को समलैंगिकता को वैधानिक करार दे दिया है. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये किसी इंसान का व्यक्तिगत मसला है और सरकार को इसमें हस्तक्षेप नही करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं. कांग्रेस पार्टी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि हम कोर्ट के इस प्रगतिशील फैसले का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि ये फैसला समाज को और भी समानता की ओर ले जाएगा.
लेकिन सत्ताधारी पार्टी भाजपा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अभी तक कोई राय नहीं बना पाई है. न तो पार्टी के सोशल मीडिया हैंडल से और न ही किसी प्रवक्ता ने इस पर कुछ कहा है. इस मामले की सुनवाई के दौरान भी जब सरकार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपना पक्ष रखने को कहा था. तब भी सरकार की अपनी कोई राय नही थी. कोर्ट में सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हम इसे कोर्ट के विवेक पर छोड़ते हैं. इससे ये साबित हो गया था कि सरकार इस मामले को लेकर असमंजस में है. वो न तो इसके खिलाफ जाकर न तो खुद को विकाशील साबित कर सकती है और न ही इसके पक्ष में जाकर अपने रूढीवादी वोटरों को निराश कर सकती है.
ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चुप्पी साधे बैठी मोदी सरकार पर सवाल उठाए जाने लगे हैं. बता दें कि सवाल उठाए जाने की मुख्य वजह धारा 377 पर पार्टी के पुराने बयान भी हैं जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने समलैंगिकता की खिलाफत की थी.
2013 में द टेलीग्राफ को दिए अपने एक साक्षात्कार में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि यदि इस मुद्दे को लेकर ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई जाती है तो हम धारा 377 का समर्थन करेंगे क्योंकि हमें लगता है कि समलैंगिकता अप्राकृतिक है और इसका समर्थन नही किया जाना चाहिए.
वहीं जब 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया था उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उसका समर्थन किया था. योगी आदित्यनाथ ने कहा था, समलैंगिकता समाजिक नैतिकता के लिए खतरा है. यदि समाज के नियमों को तोड़ दिया जाएगा तो आदमी और जानवरों में कोई फर्क नही बचेगा.
इसके अलावा भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी अकसर समलैंगिकता के विरोध में अपने बयान दर्ज कराते रहते हैं वो भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप हैं. स्वामी ने समलैंगिकता का विरोध करते हुए कहा था कि ये सामान्य नही है और हिंदुत्व के खिलाफ है. सुब्रमण्यम स्वामी ने तो ये तक कह दिया था कि समलैंगिकता के इलाज के लिए देश में रिसर्च होनी चाहिए. उन्होने ये भी कहा था कि वो इसका जश्न नही मनाएंगे.
हालांकि भाजपा में कई नेताओं जैसे वित्त मंत्री अरुण जेटली और सुषमा स्वराज समलैंगिकता का समर्थन करते रहे हैं. 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सुषमा स्वराज ने कहा था कि इस पर निराश होकर बैठने की जरूरत नही है बल्कि सरकार को इस पर कोई कानून बनाना चाहिए.
लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला समलैंगिकों के पक्ष में किया है और उसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया है तो लोग भारतीय जनता पार्टी की राय सुनने का बेचैनी से इंतजार करने लगे हैं.
सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की चुप्पी के कारण कई तरह के सवाल उठने लगे हैं. सवाल हो रहे हैं कि यदि भाजपा को फैसला रास नही आया तो क्या सरकार कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए अध्यादेश लाएगी जैसा हाल-फिलहाल में एससी-एसटी एक्ट में किया गया था.
अब इन सवालों का जवाब तो सरकार के बयान के बाद ही दिया जाएगा, तब तक ऐसी अटकलें लगती रहेंगी.