नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. शीर्ष अदालत के इस फैसले पर बुद्धिजीवियों और शीर्ष संस्थाओं की ओर से प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) ने भी इस मुद्दे पर अपना रुख साफ़ किया है.
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने अदालत के फैसले पर जारी बयान में कहा है-सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तरह हम भी इस को अपराध नहीं मानते. समलैंगिक विवाह और संबंध प्रकृति से सुसंगत एवं नैसर्गिक नहीं है, इसलिए हम इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं करते. परंपरा से भारत का समाज भी इस प्रकार के संबंधों को मान्यता नहीं देता.मनुष्य सामान्यतः अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय को सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर ही संभालने की आवश्यकता है.
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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था. इसमें 10 साल या फिर जिंदगीभर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती. यानी अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती. इतना ही नहीं, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था.
समलैंगिकता के विरोधी भारत में इसे यहां की संस्कृति के खिलाफ मानते हैं. आरएसएस खुद को विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन ही कहता है.ऐसे में उसका समलैंगिक संबंधों को लेकर नजरिया मायने रखता है. आरएसएस के राजनीतिक विंग भारतीय जनता पार्टी के तो तमाम बड़े नेता समलैंगिकता के खिलाफ बोल चुके हैं. मगर, आरएसएस कभी इस मुद्दे पर मुखर और अड़ियल नहीं दिखा. पहले भी उसने ऐसे संबंधों को अप्राकृतिक तो माना मगर समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए. ऐसा मत उसका कभी नहीं रहा.