नवरात्रि में जो इंसान देवी मां की सच्चे मन से आराधना करता है, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। बता दें कि नवरात्रि के दौरान माता के मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। ऐसे में आज हम एक ऐसे मंदिर की बात करेंगे, जहां भक्त की मौत पर पेड़ से खून निकलने लगा था।
इस मंदिर का नाम तरकुलहा देवी मंदिर है। यह मंदिर ताड़ के पेड़ों की बीच में स्थित है। इसके चलते इसका नाम तरकुलहा पड़ा। बता दें कि तरकुल शब्द ताड़ से मिलकर बना है।
तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर देवरिया मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है यह मंदिर आस्था के साथ स्वतंत्रा आंदोलन का भी प्रमुख केंद्र रहा है। मान्यताओं के अनुसार चौरी-चौरा तहसील में स्थित यह मंदिर डुमरी रियासत में पड़ता था। इसी रियासत के बाबू बंधू सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
वह ताड़ के घने जंगलों में पिंडी बनाकर मां की आराधना करते थे। बाबू बंधू सिंह से घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर लिया और फांसी की सजा सुनाई। कहते हैं कि उन्हें सात बार फांसी पर लटकाया गया और वह बच गए, क्योंकि बार-बार फांसी का फंदा टूट जाता था।
इसके बाद उन्होंने तरकुलहा देवी से आग्रह कर अपने चरणों में जगह देने की विनती की और आठवीं बार खुद ही फंदा अपने गले में डालकर शहीद हो गए। उनके शहीद होते ही दूसरी तरफ स्थित ताड़ का पेड़ टूट गया और उसमें से खून निकलने लगा। यह देखकर बाद में लोगों ने उसी जगह पर तरकुलहा देवी मंदिर का निर्माण कराया।