क्यों होती है छठी माई की पूजा, जानें कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

छठ पूजा को पर्व नहीं महापर्व कहा जाता है. इस पर्व को पूर्ण रूप से शारीरिक और मानसिक शुद्धता के साथ मनाते हैं. यह एक मात्र ऐसा पर्व है, जिसमें व्रत रखने वाला 36 घंटे निर्जला उपवास करता है. मान्यता है कि पूरे विधि-विधान से छठ व्रत को करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. छठ महापर्व पर छठी माई और भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है.

साल 2023 में 17 नवंबर से छठ महापर्व की शुरुआत होने जा रही है. इस महापर्व का समापन 20 नवंबर को होगा. 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ ही इस पर्व की शुरुआत हुई है. इसके बाद 18 को खरना, 19 को पहला अर्घ्य और 20 नवंबर को दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा. इसके बाद व्रत का पारण किया जाएगा.

हिंदू धर्म में इस पर्व को बेहद ही खास माना जाता है. यह एक मात्र ऐसी पूजा होती है, जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता है कि जो भी इस महापर्व पर ढलते हुए और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देता है, उनके जीवन में आने वाले सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं और निसंतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.

छठ महापर्व में माता पष्ठी यानी छठ मैया और भगवान सूर्यदेव की पूजा अराधना की जाती है. पष्ठी देवी यानी छठ मैया को संतान प्राप्ति की देवी माना जाता है. मान्यता है ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करते हुए स्वयं को दो भागों में विभाजित किया था. एक भाग पुरुष और दूसरा भाग प्रकृति के रूप में था. उन्हीं प्रकृति ने अपने आप को 6 भागों में विभाजित किया था. इसमें से एक मातृ देवी या देवसेना थीं. छठ मैया इन्हीं देवसेना की छठवीं अंश हैं. इस कारण इनको छठी माई कहा जाता है.

छठ पूजा को लोग मन्नतों का पर्व भी कहते हैं. इस पूजा को शारीरिक और मानसिक रूप से बड़ी शुद्धता के साथ मनाया जाता है. छठ पूजा का व्रत काफी कठिन होता है. छठ पूजा में व्रत करने वाला काफी कठिन नियमों का पालन करता है. इसके साथ ही 36 घंटे निर्जला उपवास भी करता है. मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से बेटे की रक्षा और घर में सुख व समृद्धि आती है. इसके साथ ही जीवन में उन्नति भी आती है. व्रत करने वाले को नीचे चादर बिछाकर सोना होता है. इस दिन बिना सिलाई किए हुए कपड़े पहनने होते हैं. वहीं, निसंतान महिलाएं व्रत को रखकर इन नियमों का पालन करती हैं तो छठी माई उनपर कृपा करती हैं और उनकी मनोकामनाओं को जल्दी पूरा करती हैं. इसके साथ ही उनको पुत्र की प्राप्ति होती है. छठी माई को मातृदेवी भी कहा जाता है.

ये है मान्यता

मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम जी लंकापति रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे, तब रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पष्ठी तिथि को भगवान राम और माता सीता ने उपवास रखकर सूर्यदेव की पूजा अर्चना की थी.वहीं, एक अन्य कहानी महाभारत काल से जुड़ी है. इसके अनुसार सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की थी. वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे. सूर्यदेव के आशीर्वाद से महान योद्धा बन गए थे.

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