साल 2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो से बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई. इस मामले के दोषी 11 लोगों की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज यानी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया है.
जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने ये फैसला सुनाया. पीठ ने 11 दिनों की व्यापक सुनवाई के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. कोर्ट की कार्यवाही के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से संबंधित मूल रिकॉर्ड प्रस्तुत किए थे.
बताया गया है कि गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई को उचित ठहराते हुए कहा था कि उन्होंने सुधारात्मक सिद्धांत का पालन किया. 30 सितंबर, 2022 को शीर्ष अदालत ने सवाल किया था कि क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है? इस बात पर जोर देते हुए कि यह अधिकार चुनिंदा रूप से नहीं दिया जाना चाहिए. समाज के साथ सुधार और पुन: एकीकरण का अवसर प्रत्येक कैदी को बढ़ाया जाना चाहिए.
इससे पहले एक दोषी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने प्रस्तुत किया था कि सजा माफी के आदेश ने दोषी को समाज में फिर से बसने की आशा की एक नई किरण दी है. उसे उन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का पछतावा है, जिसके कारण उसे पीड़ा हुई है. दोषियों को दी गई शीघ्र रिहाई का बचाव करते हुए लूथरा ने पेश किया कि इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2022 के आदेश के माध्यम से सुलझा लिया था.
समय से पहले रिहा किए गए 11 दोषी जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राध्येशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहनिया, प्रदीप मोर्दहिया, बकाभाई वोहनिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना हैं.
जेल में 15 साल पूरे करने के साथ-साथ कैद के दौरान उनकी उम्र और व्यवहार को ध्यान में रखते हुए उन्हें 15 अगस्त, 2022 को रिहा किया गया था.