4 साल बाद लालजी टंडन की जुबां पर आ ही गई 2014 की उस शाम की बात!

विश्वजीत भट्टाचार्य: वो 2014 की एक शाम थी. जगह दिल्ली के फिरोजशाह रोड पर एक बंगला. गेट बंद और संतरी चौकस. बाहर मीडिया की भीड़. हर अखबार और चैनल का पत्रकार ये जानने को उत्सुक कि अंदर क्या हो रहा है. बीच-बीच में बीजेपी के बड़े नेताओं की आवाजाही. बंद गेट उनके लिए तो खुलता और बंद होता रहता है, लेकिन मीडिया के लोगों के लिए नो एंट्री. अंदर दरअसल कोपभवन जैसा मामला था उस शाम. वजह थी लखनऊ जैसी बड़ी संसदीय सीट. और बंगला था लखनऊ के तब सांसद रहे और अब बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन का. अब तफसील से सुनिए कि आखिर लालजी टंडन उस शाम को अपने सरकारी बंगले को कोपभवन क्यों बनाकर बैठे थे. आगे आपको ये भी बताएंगे कि उस शाम को जो हुआ, उसकी बात सोमवार को किस तरह टंडनजी की जुबां पर आ गई.

टिकट के लिए अड़ गए थे टंडनजी

दरअसल, फिरोजशाह रोड के बंगले को लालजी टंडन ने कोपभवन इसलिए बना लिया था, क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि बीजेपी नेतृत्व उनका टिकट काटने जा रहा है. टंडन लखनऊ से सांसद थे. वही लखनऊ, जहां से अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीतकर पीएम बनते रहे थे. ऐसे में टंडनजी को अटल का उत्तराधिकारी माना जाने लगा था. इस वजह से जब लखनऊ से फिर सांसदी का टिकट न मिलने की बात सामने आई, तो लालजी टंडन खफा हो गए. वो लखनऊ से दिल्ली पहुंचे और अपने बंगले में अड़कर बैठ गए.

टंडन को इन्होंने मनाया

लालजी टंडन दिल्ली में अपने बंगले में नाराज बैठे हैं, ये खबर सियासी के साथ मीडिया के हल्कों में भी फैल गई. बीजेपी आलाकमान परेशान हो उठा. कोई और सांसद होता, तो शायद बीजेपी इतना भाव नहीं देती, लेकिन मामला अटल के चुनाव क्षेत्र लखनऊ और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी कहे जाने वाले लालजी टंडन का था. ऐसे में बीजेपी के तत्कालीन आलाकमान ने कई बड़े नेताओं को टंडनजी से मुलाकात करने भेजा. लालजी टंडन ने इन नेताओं को अपने तर्क दिए और साफ कह दिया कि टिकट लेकर ही अब दिल्ली से टलूंगा.

बीजेपी के नेता टंडनजी से मिलने आते और उनका जवाब सुनकर लौट जाते. इतने में शाम के करीब साढ़े 5 बजे. गेट खुला और एक अंबेसडर कार लालजी टंडन के बंगले में घुसी. उसमें से धोती और कुर्ता पहने दो लोग उतरे. एक थोड़े मोटे से और दूसरे शख्स तगड़े, लेकिन मोटे नहीं. दोनों की आंखों में चश्मा. दोनों के कार से उतरते ही तुरंत आवभगत के साथ उन्हें टंडनजी से मिलवाने ले जाया गया. और इसी मुलाकात ने लालजी टंडन का टिकट का हठ खत्म करा दिया. तो आखिर ये लोग कौन थे, जिन्होंने लालजी को टिकट के लिए हठ छोड़ने पर मना लिया था ? ये दो लोग संघ से थे. इनमें से एक थे सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल. उनके ही कहने पर लालजी टंडन ने सांसदी का टिकट न लेने का फैसला किया और रात में ही लखनऊ लौट गए.

जुबां पर आई दिल की बात

लेकिन 2014 में सांसदी का टिकट कटने का दर्द शायद लालजी टंडन नहीं भूले हैं. काफी वक्त से वो राजनीति से बाहर थे. खबर आई थी कि उन्हें मध्यप्रदेश का राज्यपाल बनाया जा रहा है, लेकिन फिर गुजरात की पूर्व सीएम आनंदीबेन पटेल वहां की गवर्नर बन गईं. बीते दिनों आखिरकार टंडनजी को बिहार का राज्यपाल बना दिया गया. सोमवार (24 सितंबर 2018) को लखनऊ में लालजी टंडन का अभिनंदन समारोह था. तमाम बड़े नेता कन्वेंशन सेंटर में जुटे थे. यहां गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी थे. सभी ने टंडनजी को माला पहनाई. उनके पैर छुए. फिर भाषणों का दौर शुरू हुआ. तमाम बड़े नेताओं ने लालजी टंडन से अपने रिश्तों की बात कहनी शुरू की.

राजनाथ सिंह का जब नंबर आया, तो उन्होंने कहा कि मैं तो 25 बरस से टंडनजी के साथ हूं. उनका हमेशा आशीर्वाद मिलता रहा है. फिर हंसते हुए उन्होंने कहा कि बावजूद इसके राज्यपाल बनाए जाने के बाद लालजी टंडन ने मुझे धन्यवाद नहीं दिया. दरअसल, राज्यपाल बनाए जाने की फाइल पीएम मोदी की मंजूरी के बाद राजनाथ के ही गृहमंत्रालय से शुरू होकर राष्ट्रपति तक जाती है.

राजनाथ ने ठिठोली में ये बात कही, तो 2014 की वो टिकट कटने वाली कहानी शायद लालजी टंडन को फिर मथने लगी. उन्होंने बोलना शुरू किया और छूटते ही कहा कि गृहमंत्री ने तो मेरे पर कतर दिए हैं. उन्हें शायद डर है कि मैं कहीं लखनऊ लौटकर चुनावी अखाड़े में न उतर जाऊं. इतना कहकर टंडनजी जोर से हंस तो दिए, लेकिन कन्वेंशन सेंटर के मंच और नीचे बैठे बीजेपी के तमाम बड़े नेता और कार्यकर्ता समझ गए कि राजनाथ की बात पर लालजी टंडन ने इशारों ही इशारों में काउंटर किया है. बहरहाल, इस बात पर खूब ठहाके लगे, लेकिन कहते हैं न कि जुबां पर दिल की बात आ गई. सो अभिनंदन समारोह में जो हुआ, वो इसी की तस्दीक करता है.

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