सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को झटका देते हुए उससे तुरंत चुनावी बांड की जानकारी चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया है. मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई डी.वाई चंद्रचूड़ ने SBI की ओर से पेश हुए वकील हरीश साल्वे से कहा कि हमने 15 फरवरी को फैसला दिया था और आज 11 मार्च है, बीते 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए. जानकारी जमा करने की समयसीमा खत्म होने से दो दिन पहले एसबीआई ने कोर्ट के समक्ष एक विविध आवेदन दायर किया और निर्देशों का पालन करने के लिए समयसीमा को 30 जून तक बढ़ाने की मांग की.
इस पर हरीश साल्वे ने कहा कि बांड किसने खरीदे, हमारे पास इसकी पूरी डिटेल है. हमारे पास यह भी जानकारी है कि किस राजनीतिक दल ने इसे भुनाया. हमें जानकारी देने में कोई समस्या नहीं है.
क्या है इलेक्टोरल बांड
देश में साल 2018 में इलेक्टोरल बांड स्कीम को कानूनी रूप से लागू किया गया था. सरकार ने इस योजना को लागू करने के पीछे तर्क दिया था कि इससे राजनीतिक दलों को होने वाली फंडिंग में पारदर्शिता आएगी और काले धान पर रोक लगेगी. इलेक्टोरल बांड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं.
देश का कोई नागरिक, कंपनी या संस्था अगर किसी राजनीतिक दल को चंदा देना चाहता है तो उसे इलेक्टोरल बांड खरीदना होगा. स्कीम के तहत बांड खरीदने वाले या पार्टी को चंदा देने वाले शख्स या संस्था का नाम गुप्त रखा गाएगा. इस बांड को आप बैंक को वापस कर सकते हैं और अपना पैसा वापस ले सकते हैं, लेकिन एक तय समय सीमा के अंदर आपको यह सब औपचारिकताएं करनी होंगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम को असंवैधानिक और आरटीआई का उल्लंघन करार देते हुए 15 फरवरी को इस पर रोक लगा दी थी.