नागरिकता कानून लागू होने के एक दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, मुस्लिम लीग ने की ये मांग

केंद्र सरकार की ओर से नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के लागू होने के 24 घंटे के अंदर ही इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने CAA के इम्प्लीमेंटेशन पर रोक लगाने की मांग की है.

केरल की पार्टी ने CAA कानून को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताते हुए इसे लागू करने के फैसले पर रोक लगाने की मांग की. 2019 में संसद के दोनों सदनों से पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान है. इन देशों के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों के व्यक्ति, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे, CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने इससे पहले 2019 में भी CAA कानून को चुनौती दी थी. तब केंद्र ने तब अदालत को बताया था कि कानून लागू नहीं होगा क्योंकि नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है. फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई IUML की याचिका में तर्क दिया गया है कि नागरिकता के लिए पात्र लोगों की सूची में मुसलमानों को शामिल नहीं करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

IUML की याचिका में कहा गया है कि CAA नियमों के इम्प्लीमेंटेशन (कार्यान्वयन) को तब तक रोका जाना चाहिए जब तक कि अधिनियम की संवैधानिक वैधता के खिलाफ 250 लंबित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता. याचिका में कहा गया है कि संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और इसलिए कोई भी कानून धर्म तटस्थ होना चाहिए.

सोमवार यानी कल शाम केंद्र की ओर से CAA लागू होने की घोषणा के बाद देश के कुछ हिस्सों में जश्न मनाया, जबकि कुछ हिस्सों में इस कानून का विरोध भी किया गया. बंगाल में मतुआ समुदाय के सदस्यों और भोपाल में रहने वाले सिंधी शरणार्थियों ने घोषणा के बाद जश्न मनाया. हालांकि, कुछ अन्य क्षेत्रों में जनता का मूड अलग था. असम में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. देश के अन्य इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि ये कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण है.

उधर, विपक्ष ने लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले अधिनियम के कार्यान्वयन के समय को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधा. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि भाजपा का लक्ष्य असम और पश्चिम बंगाल में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना है. उन्होंने कहा कि इस नियम को लाने में उन्हें 4 साल और 3 महीने लग गए. बिल दिसंबर 2019 में पारित हो गया. कानून 3-6 महीने के भीतर बन जाना चाहिए था. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 9 एक्सटेंशन मांगे और 4 साल और 3 महीने लग गए.

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