सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक पुरुष स्कूली शिक्षक की ओर से कक्षा में एक नाबालिग छात्रा को फूल देना और उसे दूसरों के सामने इसे स्वीकार करने के लिए मजबूर करना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न है. अदालत ने शिक्षक के खिलाफ व्यक्तिगत शिकायतों को निपटाने के लिए लड़की को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किए जाने की संभावना पर चिंता जताई.
न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन, संदीप मेहता और दीपांकर दत्ता की पीठ की ओर से लिखे गए फैसले में न्यायालय ने तमिलनाडु ट्रायल कोर्ट और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए फैसले को पलट दिया, जिसने शिक्षक को तीन साल जेल की सजा सुनाई थी. पीठ ने आरोपी शिक्षक को बरी करते हुए कहा कि हम राज्य के वरिष्ठ वकील की दलीलों से पूरी तरह सहमत हैं कि किसी भी शिक्षक द्वारा एक छात्रा (जो नाबालिग भी है) के यौन उत्पीड़न गंभीर प्रकृति के अपराधों की सूची में काफी ऊपर आएगा क्योंकि इसके बुरे परिणाम होंगे.
न्यायमूर्ति दत्ता ने फैसला लिखते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि पोक्सो के कड़े प्रावधान तब लागू होते हैं जब स्कूल जैसे सार्वजनिक स्थान पर ऐसी घटना होती है. अदालतों को यह भी पता होना चाहिए कि जब एक शिक्षक की प्रतिष्ठा दांव पर होती है और उन्हें उस शिक्षक को बदनाम करने के लिए नाबालिग लड़कियों को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, जिनकी समाज में भूमिका लड़कियों को सुरक्षित रखने जितनी महत्वपूर्ण है.