चुनाव से पहले पक्ष में आया फैसला तो फटाफट यूं बनेगा अयोध्या में मंदिर

लखनऊ: इस्लाम की रोशनी में मस्जिद के अंदर ही नमाज़ पढ़ना जरूरी है या नहीं, इस पर तो सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख साफ़ कर दिया है. सबसे बड़ी अदालत अगर इस सम्बन्ध में पुराने फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजती तो मामला लटकने के आसार थे, अब अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले आ जाए, तो विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) फटाफट राम मंदिर का निर्माण कर लेगा. इसी दिशा में संगठन तेजी से काम पूरा कराने में जुटा है. काम इतना तेज कर दिया गया है कि प्रस्तावित राम मंदिर के ज्यादातर हिस्से का पत्थर तराशा जा चुका है. आने वाले दो-तीन महीनों में बाकी हिस्से का पत्थर तराशने का लक्ष्य लेकर वीएचपी चल रही है. बता दें कि गुजरात के मशहूर शिल्पकार चंद्रकांत सोमपुरा ने मंदिर का डिजायन तैयार किया है.

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कितना पत्थर तराशा गया ?

वीएचपी के मुताबिक राम मंदिर में कुल 1.75 लाख घन फुट पत्थर लगेगा. इसमें से अब तक 65 फीसदी काम हो चुका है और 1.10 लाख घन फुट पत्थर तराशा जा चुका है. प्रस्तावित मंदिर के भूतल में लगने के लिए अब तक 106 खंभे बनाए जा चुके हैं. पहली मंजिल पर भी 106 खंभे ही लगेंगे. इसका काम चल रहा है. फिलहाल जितने पत्थरों पर नक्काशी की जा चुकी है, उससे सिंह द्वार, उसके बाद रंग मंडप और रामलला के लिए गर्भगृह बन सकता है.

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सिर्फ पत्थरों को जोड़कर बन जाएगा मंदिर

इस मंदिर का डिजाइन इस तरह तैयार किया गया है कि नींव बनाने के बाद पत्थरों को खांचे में जोड़ना भर रह जाएगा और ऐसे में क्रेन से पत्थरों को उनके दिए क्रम से एक के ऊपर एक जोड़कर कुछ ही दिन में राम मंदिर को वीएचपी तैयार कर लेगी.

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अभी तिरपाल के नीचे हैं रामलला

1992 में 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद कहे जाने वाले ढांचे के ध्वंस के बाद से रामलला एक अस्थायी मंदिर में तिरपाल के नीचे विराजते हैं. यहां चौतरफा सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था है, क्योंकि एक बार आतंकी भी यहां हमला कर चुके हैं. राम जन्मभूमि पर बने इस मंदिर में रामलला की मूर्ति भी 1992 में ढांचे के ध्वंस के बाद बदल चुकी है. जो मूर्ति अभी है, उसे अयोध्या के राज परिवार ने ढांचा ध्वंस के बाद प्रशासन को दिया था. 1949 में बाबरी ढांचे में कथित तौर पर प्रकट हुई रामलला की मूर्ति को विवादित ढांचे के ध्वंस के दौरान तब के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास बाहर लेकर आए थे और फिर इस मूर्ति को अज्ञात कारसेवक अपने साथ लेकर चले गए थे.

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