लिव-इन रिलेशन को लेकर केरल हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, आदमी को इस मामले में नहीं बना सकते दोषी

लिव-इन रिलेशन को लेकर केरल हाई कोर्ट ने एक अहम बयान दिया है। केरल हाई कोर्ट ने एक हालिया फैसले में कहा कि लिव इन रिलेशन के मामले में किसी महिला के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों की क्रूरता का दंडात्मक प्रावधान लागू नहीं होता। हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा किसी महिला के साथ क्रूरता किए जाने पर सजा का प्रावधान करती है। आगे कोर्ट ने कहा कि चूंकि लिव-इन रिलेशन में रहने वाले युगल की शादी नहीं होती, इसलिए पुरुष ‘पति’ शब्द के दायरे में नहीं आएगा।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति ए बदरुद्दीन ने 8 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘इस प्रकार, विवाह वह घटक है जो महिला के साथी को उसके पति की स्थिति तक ले जाता है। कानून की नजर में शादी का मतलब शादी है। इस प्रकार, कानूनी विवाह के बिना, यदि कोई पुरुष किसी महिला का साथी बन जाता है, तो वह भादंसं की धारा 498ए के प्रयोजन के लिए ‘पति’ शब्द के दायरे में नहीं आएगा।’’

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, यह आदेश एक व्यक्ति की उस याचिका पर आया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत उसके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने का आग्रह किया गया था। अपने खिलाफ मामले को रद्द करने का आग्रह करते हुए व्यक्ति ने दलील दी कि वह शिकायतकर्ता महिला के साथ लिव-इन रिलेशन में था और उनके बीच कोई कानूनी विवाह नहीं हुआ। इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत अपराध नहीं बनता है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सहमति जताते हुए कहा कि चूंकि उसका महिला से विवाह नहीं हुआ है, इसलिए वह भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए में दी गई ‘पति’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आएगा।

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