सुप्रीम कोर्ट ने दहेज निषेध अधिनियम-1961 के तहत एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि शादी के समय दिए गए पारंपरिक उपहार दहेज के अंतर्गत नहीं आते हैं। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने तलाक से जुड़े एक मामले में यह निर्णय दिया। अदालत ने यह भी कहा कि शादी के समय दिए गए उपहार को दहेज मानकर दहेज निषेध अधिनियम की धारा-6 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
यह मामला एक तलाकशुदा महिला के ‘स्त्रीधन’ को वापस न करने को लेकर था। महिला का तलाक 2016 में अमेरिका में हुआ था और सभी वित्तीय व वैवाहिक मुद्दों पर समझौता भी हो चुका था। इसके बावजूद, उसके पिता ने 2021 में ससुराल वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। उनका आरोप था कि ससुराल वाले बार-बार मांगने के बावजूद उसकी बेटी के सोने के गहने लौटाने में असमर्थ रहे हैं।
महिला के पिता ने यह मुकदमा तलाक के पांच साल बाद दायर किया था। उन्होंने IPC की धारा 406 और दहेज निषेध अधिनियम-1961 की धारा-6 के तहत ससुराल वालों के खिलाफ केस दर्ज कराया। इस मामले में तेलंगाना हाई कोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई को रोकने से इंकार कर दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए इस मामले में सुनवाई करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद शिकायतकर्ता पिता की तरफ से दाखिल केस को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए FIR को खारिज कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि शादी के समय दिए गए गहने दहेज के अंतर्गत नहीं आते और इसलिए दहेज निषेध अधिनियम की धारा-6 के तहत दंडित करने का कोई मामला नहीं बनता। इसके साथ ही, ससुराल वालों के खिलाफ की जा रही सभी कानूनी कार्रवाईयों को भी रद्द कर दिया गया है।