कर्नाटक के जस्टिस श्रीसानंदा ने “मिनी पाकिस्तान” टिप्पणी पर मांगी माफी, सुप्रीम कोर्ट ने बंद किया केस

कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस श्रीसानंदा ने हाल ही में एक विवादित टिप्पणी की थी, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु के एक इलाके को “मिनी पाकिस्तान” कहा था। इस बयान के बाद काफी विवाद खड़ा हो गया था, जिसके चलते उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 25 सितंबर 2024 को उनका केस बंद कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच की सुनवाई

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा कि जस्टिस श्रीसानंदा ने स्वयं कोर्ट में वकीलों को बुलाकर अपने बयान के लिए खेद व्यक्त किया है। कोर्ट ने आगे कहा कि अब मामले को जारी रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जस्टिस ने सभी को क्षमा मांगी है।

जस्टिस का स्पष्टीकरण

अपनी टिप्पणी के बाद, जस्टिस श्रीसानंदा ने कहा कि उनका उद्देश्य किसी भी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। उन्होंने खुली अदालत में वकीलों और आम नागरिकों से माफी मांगी, जिससे उनकी मंशा स्पष्ट हो गई।

सुप्रीम कोर्ट की सलाह

इस मामले में सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस ने सभी जजों से संयम बरतने की अपील की। उन्होंने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया के इस दौर में जजों को अपनी टिप्पणियों में अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। जजों को केस से संबंधित टिप्पणी करने में विवेक का उपयोग करना चाहिए, ताकि यह न लगे कि वे किसी विशेष वर्ग के प्रति भेदभाव कर रहे हैं।

वीडियो रिपोर्टिंग का आदेश

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 20 सितंबर को कर्नाटक हाई कोर्ट की रजिस्ट्री से दो वीडियो की रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था, जिनमें जस्टिस श्रीसानंदा की विवादित टिप्पणी को कैद किया गया था। इस मामले में जस्टिस पर कार्रवाई की मांग भी की गई थी।

कार्यकाल और नियुक्ति की जानकारी

जस्टिस श्रीसानंदा को 4 मई 2020 को कर्नाटक हाई कोर्ट में एडिशनल जस्टिस के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें 25 सितंबर 2021 को स्थायी जस्टिस बनाया गया था। उनके विवादास्पद बयान ने न्यायिक क्षेत्र में एक नई चर्चा को जन्म दिया, जो कि जजों की सार्वजनिक टिप्पणियों पर सवाल उठाता है।

इस मामले के बाद, यह साफ है कि न्यायालयों में जिम्मेदार बयान देना कितना आवश्यक है। जस्टिस श्रीसानंदा की माफी और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस बात का संकेत है कि अदालतों को संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए। इस मुद्दे ने न्यायपालिका में नैतिकता और जिम्मेदारी की आवश्यकता को फिर से उजागर किया है।

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