गाजियाबाद में सपा का नया सियासी दांव, कांग्रेस कोटे की सीटों पर बढ़ी हलचल

उत्तर प्रदेश विधानसभा की 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सभी 9 सीटों पर चुनावी मैदान में हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 8 सीटों पर खुद चुनाव लड़ रही है और एक सीट पर उसकी सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) भाग ले रही है। सपा ने पहले कांग्रेस के लिए गाजियाबाद और खैर सीटें छोड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन कांग्रेस ने सहमति नहीं दिखाई। इसके बाद, सपा ने इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है, जिससे अखिलेश यादव का नया सियासी प्रयोग सामने आया है।

गाजियाबाद और खैर सीट पर बीजेपी का दबदबा
गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट पर बीजेपी का एकछत्र राज कायम है। बीजेपी की मजबूत स्थिति को देखते हुए कांग्रेस ने पहले इन सीटों पर चुनाव लड़ने से कदम पीछे खींच लिए थे। फिर, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया। खैर सीट पर चारू कैन और गाजियाबाद सीट पर सिंह राज जाटव को टिकट दिया गया है।

अयोध्या जैसा प्रयोग गाजियाबाद में
अखिलेश यादव ने गाजियाबाद विधानसभा सीट पर अयोध्या और मेरठ लोकसभा सीट वाला सियासी दांव चला है। 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित प्रत्याशियों को उतारने का जो प्रयोग किया गया था, उसे दोहराते हुए गाजियाबाद सीट पर सिंह राज जाटव को टिकट दिया गया है। बीजेपी ने ब्राह्मण समुदाय से संजीव शर्मा को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा ने वैश्य समुदाय के परमानंद गर्ग पर दांव लगाया है। सपा का लक्ष्य यादव और मुस्लिम मतदाताओं के साथ-साथ दलित वोटरों को भी अपनी ओर आकर्षित करना है।

खैर में दलित-जाट समीकरण
अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट पर चारू केन को उम्मीदवार बनाने का निर्णय भी एक सटीक राजनीतिक रणनीति है। यह सीट दलित समाज के लिए आरक्षित है, और चारू केन दलित समुदाय से आती हैं। उनकी शादी एक जाट परिवार में हुई है, जिससे जाट और दलित दोनों वोटों को साधने की कोशिश की गई है। 2022 के विधानसभा चुनाव में चारू बसपा के टिकट पर उम्मीदवार रहीं थीं, और वे दूसरे स्थान पर रहीं थीं।

सपा का उद्देश्य खैर सीट पर जाट और दलित दोनों वोटों का समर्थन हासिल करना है, खासकर जब बीजेपी और आरएलडी एक साथ हैं। खैर सीट पर लगभग एक लाख जाट मतदाता, 57 हजार दलित मतदाता और 25 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इस समीकरण के जरिए सपा ने अपना दांव खेला है।

कांग्रेस को सियासी बैलेंस
चारू केन का सपा में आना भी कांग्रेस के लिए एक झटका है, जिसने पहले इन सीटों पर चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। अब देखना है कि गाजियाबाद और खैर की ये सीटें सपा के लिए कितनी फायदेमंद साबित होती हैं।

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