आज भले ही मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं, लेकिन उनके गाए हुए गीत बिहार और आसपास के इलाकों में आज भी उतने ही प्रिय हैं। खासकर मांगलिक आयोजनों और छठ पूजा जैसे अवसरों पर उनके गीतों का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, हिंदी, मैथिली और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अपनी आवाज़ का जादू चलाया है। बिहार के छोटे से गांव से निकलकर विश्व मंच तक अपनी पहचान बनाने वाली शारदा सिन्हा का जीवन एक महत्वपूर्ण मोड़ उस दिन आया था, जब उनकी भाभी ने उन्हें पहली बार नेग (रस्म का गीत) गाना सिखाया था।
शारदा सिन्हा के लिए गीत गाना एक पैशन था, जो बचपन से ही उनके दिल में था। उनका कहना था कि वह अपने घर के आंगन में अक्सर गाती रहती थीं, और उन्हें गाने का शौक बचपन से ही था। उनकी भाभी ने उन्हें ‘नेग’ का गीत सिखाया, और यही गीत शारदा की ज़िन्दगी का टर्निंग प्वाइंट बन गया। उन्होंने इस गीत को गाया और तभी से उनके संगीत करियर की शुरुआत हुई।
उनकी सबसे पसंदीदा भोजपुरी गाने की बात करें तो वह फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ के गीत ‘लाली लाली होठवां से बरसे ललइया हो’ को सबसे ज्यादा पसंद करती थीं। पान खाने की शौकीन शारदा सिन्हा का पसंदीदा भोजन चूड़ा, मलाई वाली दही और हरी मिर्च था।
शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में कई यादें साझा की हैं, जिसमें एक किस्सा खास है। बचपन में जब वह स्कूल में पढ़ती थीं, तो उन्होंने अपनी सहेलियों के साथ बिना प्रिंसिपल को बताए सूर्य ग्रहण के दिन गंगा स्नान के लिए चली गई थीं। जब यह बात प्रिंसिपल को पता चली, तो उन्होंने शारदा को चार घंटे तक धूप में खड़ा करने की सजा दी थी, जो उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाई।
शारदा सिन्हा की सोच हमेशा सकारात्मक रही है। उन्होंने एक बार कहा था कि आजकल के भोजपुरी गायक बहुत प्रतिभाशाली हैं, लेकिन उन्हें अपनी आवाज़ को सही दिशा में इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर नई पीढ़ी साफ-सुथरे और अच्छा गाना गाती है, तो उनकी पहचान और बेहतर हो सकती है। शारदा सिन्हा का संगीत जगत में योगदान हमेशा याद रखा जाएगा, और आज भी उनका हर गीत बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।