सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को कड़ी फटकार, बुलडोजर एक्शन को मनमानी और अराजकता करार दिया

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर एक घर को बुलडोजर से गिराए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच—चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के खिलाफ तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर घरों को तोड़ने का तरीका पूरी तरह से मनमानी है और अराजकता को बढ़ावा देने वाला है।

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को क्या कहा?

कोर्ट ने यूपी सरकार के अधिकारियों पर निशाना साधते हुए कहा कि घरों को बिना किसी नोटिस और उचित प्रक्रिया के तोड़ा गया। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने नाराजगी जताते हुए कहा, “आप कैसे किसी के घर को तोड़ सकते हैं? यह पूरी तरह से अराजकता है और मनमानी है। आपने कोई नोटिस तक नहीं दिया, आप केवल मौके पर पहुंचे और लोगों को सूचित किया।” कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या इस पूरी प्रक्रिया में कोई उचित कानूनी कदम उठाया गया था? इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से दंडात्मक मुआवजा देने की संभावना पर भी चर्चा की, और यह सवाल उठाया कि क्या इससे न्याय का उद्देश्य पूरा होगा।

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने यूपी सरकार के वकील से सवाल किया, “आपने 1960 से क्या किया है? पिछले 50 साल से क्या कर रहे थे?” उन्होंने कहा कि राज्य को एनएचआरसी (नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन) के आदेशों का सम्मान करना चाहिए, और यह नहीं हो सकता कि एक अधिकारी के गलत कामों का बचाव किया जाए।

इसके अलावा, जस्टिस पारदीवाला ने यह भी कहा, “आपने एक रात सड़क के चौड़ीकरण के लिए पीले निशान लगाए और अगले ही दिन बुलडोजर लेकर आ गए। यह अधिग्रहण जैसा है। क्या यह न्यायिक प्रक्रिया है? आप परिवारों को घर खाली करने का समय तक नहीं देते। सड़क चौड़ीकरण का बहाना सिर्फ एक झूठ था।”

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 2019 में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत मकान गिराए जाने से जुड़ा है, जो यूपी के महाराजगंज जिले के एक क्षेत्र में हुआ था। याचिकाकर्ता मनोज टिबरेवाल आकाश ने रिट याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि इस तोड़फोड़ कार्रवाई को सड़क चौड़ीकरण के लिए गलत तरीके से अंजाम दिया गया था, जबकि कोई उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि निजी संपत्तियों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई के लिए कानूनी कदमों का पालन जरूरी था।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यूपी सरकार को सख्त दिशा-निर्देश दिए और यह भी कहा कि राज्य सरकार ने अतिक्रमण के सही सीमा और अधिग्रहण के दस्तावेज नहीं पेश किए हैं। कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि जब अतिक्रमण की सही सीमा का निर्धारण ही नहीं किया गया है, तो ऐसे में क्यों अन्य संपत्तियों को तोड़ा गया?

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “एनएचआरसी की रिपोर्ट से यह साबित होता है कि तोड़ा गया हिस्सा 3.75 मीटर से ज्यादा था, जो इस पूरी कार्रवाई की सही प्रक्रिया से मेल नहीं खाता।” उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरी कार्रवाई में किसी भी तरह की मुनादी या नोटिस नहीं दिया गया, और इसने पूरी तरह से कानूनी अधिकार के बिना किया गया था।

कोर्ट ने यूपी सरकार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था। कोर्ट ने इसे अतिक्रमण हटाने का एक बेखौफ तरीका मानते हुए इसे संविधान और कानून के खिलाफ करार दिया।

यह मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे किसी भी कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया और नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार के अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर भविष्य में ऐसी घटनाएं होती हैं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।

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