नई दिल्ली: दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआइ) विश्वविद्यालय में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और मतांतरण के दबाव के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट द्वारा जारी एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि संस्थान में धार्मिक भेदभाव और गैर-मुसलमानों के खिलाफ उत्पीड़न किया जाता है। रिपोर्ट में यह चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं कि कैसे जामिया में गैर-मुसलमानों को मानसिक रूप से परेशान किया जाता है, साथ ही उन पर मतांतरण के लिए दबाव भी डाला जाता है।
क्या है रिपोर्ट ?
कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में 27 गवाहों की गवाही शामिल है, जिनमें सात प्रोफेसर, आठ-नौ कर्मचारी, और 10 छात्र शामिल हैं। इन गवाहों ने जामिया में धार्मिक भेदभाव की घटनाओं को साझा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि संस्थान में मुस्लिम कर्मचारी गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव करते हैं और उन्हें मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि कुछ गैर-मुसलमान छात्रों और कर्मचारियों को इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डाला जाता है। एक छात्र ने आरोप लगाया कि उसके शिक्षक ने कक्षा में यह घोषणा की कि अगर वह इस्लाम नहीं अपनाएंगे तो उनका एमडी पूरा नहीं होगा।
रिपोर्ट में कौन से मामले सामने आए?
रिपोर्ट के मुताबिक, एक गैर-मुस्लिम महिला सहायक प्रोफेसर ने बताया कि वह शुरुआत से ही भेदभाव का सामना कर रही थीं। उन्हें अपनी पीएचडी थीसिस जमा करते वक्त एक मुस्लिम क्लर्क ने अपमानित किया और उन्हें बताया कि वह कुछ हासिल नहीं कर सकतीं। इसी तरह, एक अन्य प्रोफेसर ने बताया कि उनके और मुस्लिम कर्मचारियों के बीच कार्यालय की सुविधाओं के मामले में भेदभाव किया गया।
इसके अलावा, एक अनुसूचित जाति से संबंधित फैकल्टी सदस्य ने बताया कि जब उसे केबिन आवंटित किया गया, तो कर्मचारियों ने कहा, “कैसे एक काफिर को केबिन दे दिया गया।”
कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट की फैक्ट फाइंडिंग टीम का गठन
यह रिपोर्ट दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस एसएन ढींगरा के नेतृत्व में बनाई गई थी। इसमें दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव भी शामिल थे। रिपोर्ट को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंपा गया है।
क्या है जामिया का जवाब?
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रशासन ने अभी तक इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, यह मामला अब सार्वजनिक हो चुका है और जामिया की छवि पर असर डाल सकता है।
आगे की कार्रवाई:
कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए संबंधित अधिकारियों से जांच की मांग की है। अब देखना यह होगा कि क्या दिल्ली सरकार और जामिया प्रशासन इस मामले की गंभीरता को समझते हुए त्वरित कदम उठाते हैं।
क्या जामिया मिल्लिया में धार्मिक भेदभाव बढ़ रहा है?
यह रिपोर्ट जामिया मिल्लिया इस्लामिया के खिलाफ उठाए गए आरोपों को गंभीर रूप से उजागर करती है। अगर इन आरोपों की जांच होती है, तो यह उच्च शिक्षा संस्थानों में धार्मिक समानता और समावेशिता पर बड़ा सवाल खड़ा कर सकता है।