जब इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाला गया: कैसे वे विरोधियों को चित कर लोगों के दिल में बस गईं

Indira Gandhi Birth Anniversary: आज, 19 नवंबर को भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की Birth Anniversary है। उनका जीवन राजनीति में एक मील का पत्थर रहा है और उनकी नेतृत्व क्षमता हमेशा चर्चा का विषय रही है। इंदिरा गांधी ने अपनी तेज-तर्रार और निर्णायक शैली से भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी। जब वह प्रधानमंत्री बनीं, तो उनका संघर्ष सिर्फ पार्टी के भीतर नहीं था, बल्कि वह देश की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे के रूप में सामने आईं।
कांग्रेस में बगावत: 1969 का ऐतिहासिक विभाजन
1967 में जब इंदिरा गांधी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनीं, तो उन्हें कांग्रेस के उस पुराने धड़े ‘सिंडीकेट’ से चुनौती का सामना करना पड़ा, जो पार्टी में निर्णायक भूमिका निभा रहा था। यह धड़ा उनके प्रधानमंत्री बनने की राह में सबसे बड़ी रुकावट था। सिंडीकेट के दबाव से मुक्त होने के लिए इंदिरा गांधी ने बड़े फैसले लेने शुरू किए, जिनमें राष्ट्रपति चुनाव भी शामिल था। 1967 में इंदिरा ने राष्ट्रपति पद के लिए डॉक्टर राधाकृष्णन के बजाय डॉक्टर जाकिर हुसैन को समर्थन दिया, जो बाद में राष्ट्रपति बने, लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु ने इंदिरा को एक नए चुनाव की ओर धकेल दिया।
जब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति चुनाव में वी.वी. गिरि को समर्थन दिया, तो पार्टी के भीतर बगावत शुरू हो गई। पार्टी ने इंदिरा गांधी को अनुशासनहीनता के आरोप में कांग्रेस से निकालने का फैसला किया। इसके साथ ही, 1969 में कांग्रेस का ऐतिहासिक विभाजन हुआ और कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) दो गुटों में बंट गए।
इंदिरा का ‘गरीब समर्थक’ चेहरा
इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीति में कई महत्वपूर्ण फैसले किए, जिनकी वजह से उनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। उन्होंने 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला किया, जिसके बाद उनके पक्ष में गरीबों की एक बड़ी आवाज उठी। उनका कहना था कि बैंकों का काम सिर्फ अमीरों की मदद करना नहीं बल्कि आम आदमी तक कर्ज पहुंचाना चाहिए। इस फैसले ने उन्हें गरीबों का ‘साहसिक नेता’ बना दिया।
इंदिरा का यह कदम महज एक वित्तीय निर्णय नहीं था, बल्कि इसने देश की राजनीति को भी नए आयाम दिए। उनके इस फैसले के समर्थन में सड़कों पर हजारों लोग उतर आए और उनका समर्थन किया। इसके साथ ही, इंदिरा गांधी ने अपनी लोकप्रियता को और भी ज्यादा बढ़ा लिया।
प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की स्थिति
इंदिरा गांधी की राजनीतिक यात्रा हमेशा संघर्षमय रही। कांग्रेस पार्टी के भीतर उनकी स्थिति लगातार कमजोर हो रही थी और कई बार उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे का विचार आया। 1969 में जब पार्टी ने संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, तो इंदिरा गांधी के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। उनके करीबी सहयोगी चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र करते हुए बताया कि एक समय ऐसा आया था, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बारे में सोच रही थीं। लेकिन चंद्रशेखर ने उन्हें हिम्मत दी और कहा कि उन्हें संघर्ष करना चाहिए, इस्तीफा नहीं देना चाहिए।
‘अंतरात्मा की आवाज’ का जादू
इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति चुनाव में वी.वी. गिरि को समर्थन देने के बाद यह ऐलान किया कि यह उनका ‘अंतरात्मा की आवाज’ है। इस कदम ने चुनावी राजनीति को एक नया मोड़ दिया। इंदिरा गांधी ने संजीव रेड्डी को साम्प्रदायिकता का आरोप लगाकर विरोधी खेमे को घेर लिया। यह एक बड़ा संघर्ष था, जिसमें इंदिरा की राजनीति और नेतृत्व कौशल का एक नया चेहरा सामने आया। अंततः, वी.वी. गिरि ने राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया और इंदिरा की रणनीति सफल रही।
कांग्रेस से निष्कासन और विभाजन
इंदिरा गांधी को 12 नवंबर 1969 को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। कांग्रेस के अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने कहा कि इंदिरा गांधी अपनी ‘तानाशाही’ प्रवृत्तियों के कारण पार्टी से बाहर हो गईं हैं। इसके बाद, कांग्रेस का औपचारिक रूप से विभाजन हो गया और दो अलग-अलग धड़े बन गए—कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर)। इंदिरा गांधी का नेतृत्व अब पूरी तरह से कांग्रेस (आर) में था, और पार्टी में उनका नियंत्रण मजबूत हो गया।
इंदिरा की अपार लोकप्रियता और पार्टी पर कब्जा
इंदिरा गांधी ने न सिर्फ संगठन की लड़ाई में जीत हासिल की, बल्कि उन्होंने अपने नेतृत्व का वह रूप भी पेश किया, जो पूरे देश में फैल गया। कांग्रेस के विभाजन के बाद भी इंदिरा गांधी का समर्थन बढ़ता गया। उनकी नीतियों ने उन्हें एक लोकप्रिय और ताकतवर नेता बना दिया। 1971 के चुनाव में उनकी ‘गरीबी हटाओ’ योजना ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई और पूरे देश में उनकी छवि एक मजबूत और निडर नेता के रूप में स्थापित हो गई।
इंदिरा का नेतृत्व: नेहरू-गांधी परिवार का प्रभुत्व
इंदिरा गांधी ने साबित किया कि कांग्रेस का असली नेतृत्व नेहरू-गांधी परिवार के पास है। पार्टी के अंदर और बाहर उनके फैसलों ने इस बात को पुख्ता किया। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस की पहचान बनी और पार्टी का भविष्य तय हुआ। इंदिरा गांधी ने अपनी सख्त राजनीति और गरीबों के लिए किए गए फैसलों से अपने विरोधियों को पूरी तरह से हरा दिया। उनके नेतृत्व के बिना कांग्रेस की कल्पना करना अब लगभग असंभव था।

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