राज्यसभा में विपक्ष ने हाल ही में उपराष्ट्रपति और सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है। विपक्षी गठबंधन ने इस प्रस्ताव के समर्थन में 60 से अधिक सदस्य जुटा लिए हैं और प्रस्ताव को राज्यसभा के सचिवालय में सौंप दिया है। हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर विपक्ष में उत्साह है, लेकिन क्या यह प्रस्ताव संसद में अपनी मंजिल तक पहुँच पाएगा, यह सवाल अब ज्यादा अहम हो गया है।
किसकी कितनी ताकत है राज्यसभा में?
राज्यसभा में कुल सदस्य 237 हैं, जिसमें 8 सीटें खाली हैं, जिनमें से 4 जम्मू-कश्मीर से और 4 मनोनीत सदस्य हैं। ऐसे में इस प्रस्ताव को पास करने के लिए विपक्ष को जिस तरह की संख्या चाहिए, वह उसे आसानी से हासिल करना मुश्किल साबित हो सकता है। एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) ने हाल ही में 12 और सदस्यों को अपने साथ जोड़कर राज्यसभा में अपनी ताकत को और मजबूत किया है। इस गठबंधन के पास अब कुल 119 सदस्य हैं, जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास अकेले 96 सीटें हैं। इसके अलावा छह मनोनीत सदस्य और दो निर्दलीय सदस्य भी एनडीए के साथ हैं।
यहां पर सबसे अहम बात यह है कि राज्यसभा में बहुमत की स्थिति एनडीए के पास है, और विपक्ष के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह इस प्रस्ताव को सफल बना सके। 60 सदस्य इस प्रस्ताव के पक्ष में खड़े हो चुके हैं, लेकिन इनमें सोनिया गांधी या किसी बड़े विपक्षी नेता का समर्थन नहीं है, जो विपक्ष की ताकत को मजबूत कर सके। ऐसे में विपक्ष के लिए यह मुश्किल हो सकता है कि वह इस प्रस्ताव को जीत पाए।
कांग्रेस की स्थिति और विपक्ष के नेता का संकट
कांग्रेस पार्टी की स्थिति भी वर्तमान में कमजोर है। राज्यसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ 26 सदस्य हैं, और वह विपक्ष के नेता का दर्जा खोने के कगार पर खड़ी है। विपक्ष के नेता बनने के लिए किसी भी पार्टी को कम से कम 25 सदस्य चाहिए होते हैं, और कांग्रेस के पास सिर्फ 26 सदस्य होने के कारण वह इस पद से वंचित हो सकती है। वहीं, कांग्रेस को विपक्षी दलों के साथ और मजबूती से खड़ा होने के लिए भी और सहयोग की आवश्यकता है, जो फिलहाल उसके पास नहीं है। कांग्रेस को यह साबित करना होगा कि वह विपक्ष के नेतृत्व का सही दावा कर सकती है।
एनडीए का दबदबा और विपक्ष के लिए मुश्किलें
एनडीए के पास राज्यसभा में बहुमत का भारी दबदबा है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों का प्रभाव राज्यसभा में इतना मजबूत हो गया है कि विपक्षी दलों के लिए इस प्रस्ताव को पास कराना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होगा। इसके अलावा, अगले साल नवंबर में कुछ सदस्य रिटायर हो रहे हैं, जिनमें से अधिकतर भाजपा के सदस्य होंगे, लेकिन तब तक एनडीए की स्थिति में कोई खास बदलाव की संभावना नहीं है। यह स्थिति एनडीए को और मजबूत बनाएगी, जिससे विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशें और कठिन हो सकती हैं।
क्या बदल रहा है विपक्ष का गठबंधन?
विपक्ष को लेकर एक दिलचस्प मोड़ भी आ सकता है, क्योंकि कुछ विपक्षी दल, जैसे वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और बीजू जनता दल, जो अक्सर सरकारी बिलों के समर्थन में होते हैं, अब विपक्ष के करीब आ गए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद इन दोनों दलों के नेताओं के साथ विपक्ष की स्थिति और मज़बूत हो सकती है, लेकिन फिलहाल राज्यसभा में उनकी स्थिति विपक्ष के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है।
संसद में महत्वपूर्ण बदलाव की संभावना नहीं
राज्यसभा में इस समय किसी भी बड़े बदलाव की संभावना नहीं है। आगामी चुनावों का दौर अगले साल नवंबर में होगा, जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ सदस्य रिटायर होंगे। इनमें से अधिकांश भाजपा के सदस्य होंगे, लेकिन राज्य की विधानसभा में भाजपा का मजबूत रुझान देखते हुए फिलहाल विपक्ष को कोई बड़ी उम्मीद नहीं है। ऐसे में अगले कुछ सालों तक राज्यसभा में एनडीए का दबदबा बना रहेगा और विपक्ष को इस दबदबे के खिलाफ किसी बड़ी रणनीति की आवश्यकता होगी।