जेडीयू में मुस्लिम वोटों को लेकर घमासान, बिहार में नीतीश की मुस्लिम राजनीति का भविष्य

बिहार विधानसभा चुनाव अभी दस महीने दूर हैं, लेकिन सियासी हलचल तेज हो चुकी है। आरजेडी, कांग्रेस और ओवैसी जैसे नेता मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं, तो वहीं जेडीयू के भीतर इस सवाल पर मतभेद नजर आ रहे हैं कि क्या मुस्लिम वोट बैंक अब नीतीश कुमार से दूर हो चुका है? हाल ही में जेडीयू के कुछ नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम वोटरों ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया है, जबकि कुछ अन्य इस बात से इंकार कर रहे हैं और कह रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय अभी भी नीतीश कुमार के समर्थन में है।

जेडीयू के भीतर बंटा हुआ मुस्लिम वोट का मुद्दा

इस समय जेडीयू में मुस्लिम वोट के मामले पर दो खेमे बन गए हैं। एक धड़ा कहता है कि मुस्लिम समाज का समर्थन अब जेडीयू को नहीं मिलता, जबकि दूसरा धड़ा यह दावा कर रहा है कि मुस्लिमों ने हमेशा नीतीश कुमार को वोट दिया है और आगे भी देंगे। जेडीयू के केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा यह मानते हैं कि मुस्लिम वोट अब जेडीयू को नहीं मिल रहा है। संजय झा ने हाल ही में सीमांचल में एक कार्यकर्ता सम्मेलन में खुलकर कहा कि मुस्लिमों का वोट जेडीयू को नहीं मिलता, इसीलिए विपक्ष को फायदा मिलता है।

इसके उलट, जेडीयू के मंत्री जमा खान ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में बिना किसी भेदभाव के सभी समुदायों के लिए काम हुआ है और जेडीयू को हर जाति और धर्म का समर्थन मिलता है। उनका कहना था कि मुस्लिम वोट की कमी नहीं है, बल्कि यह एक साजिश के तहत फैलाया गया भ्रम है।

बिहार में मुस्लिम वोट बैंक की ताकत

बिहार में मुस्लिम वोटरों की आबादी लगभग 17.7 प्रतिशत है, जो सियासी रूप से किसी भी पार्टी को सत्ता में लाने या गिराने की ताकत रखता है। बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक होते हैं। इन सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है, और इनमें से कुछ सीटों पर 40 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा, 29 सीटों पर मुस्लिम मतदाता 20 से 30 प्रतिशत के बीच हैं। इन आंकड़ों को देखकर यह समझा जा सकता है कि बिहार चुनावों में मुस्लिम वोट का कितना महत्व है।

मुस्लिम वोट बैंक का इतिहास

बिहार में मुस्लिम वोट बैंक का इतिहास बहुत दिलचस्प है। लंबे समय तक मुस्लिम समुदाय कांग्रेस के साथ था, लेकिन 1971 के बाद यह समर्थन धीरे-धीरे कम होता गया। 1990 के दशक में जब जनता दल का गठन हुआ, तो मुस्लिमों का एक बड़ा हिस्सा इस पार्टी से जुड़ गया। फिर जब आरजेडी की स्थापना हुई, तो मुस्लिम समुदाय ने लालू प्रसाद यादव का साथ दिया। 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद मुस्लिम वोट का एक हिस्सा जेडीयू के साथ गया।

नीतीश कुमार ने खासकर पसमांदा मुस्लिमों के लिए काम किया था। अली अनवर और एजाज अली जैसे नेताओं के माध्यम से उन्होंने पसमांदा मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ा, जिससे जेडीयू को मुस्लिम वोटों में इजाफा हुआ। जब जेडीयू के साथ मुस्लिम वोट जुड़ा, तो पार्टी एनडीए में बड़ी ताकत बन गई। 2010 में, जब जेडीयू ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा, तो मुस्लिम वोट का एक बड़ा हिस्सा जेडीयू को मिला था।

नीतीश के बीजेपी से गठबंधन के बाद मुस्लिमों का मोहभंग

2015 में जब जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, तो मुस्लिमों ने एकजुट होकर वोट दिया। लेकिन 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलविदा लेकर बीजेपी के साथ हाथ मिलाया, जिससे मुस्लिम समुदाय का जेडीयू से मोहभंग हो गया। 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समाज ने जेडीयू से दूरी बना ली। सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि 2020 में 77 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों ने महागठबंधन को वोट किया था, जबकि केवल 11 प्रतिशत ने ओवैसी की एआईएमआईएम को वोट दिया था।

2020 में जेडीयू, बीजेपी और बसपा जैसे दलों को कुल मिलाकर 12 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिला था, जो कि पहले के मुकाबले काफी कम था। जेडीयू ने इस चुनाव में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं सका। यह नीतीश कुमार के लिए बड़ा झटका था क्योंकि यह पहली बार था जब जेडीयू से कोई मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में सफल नहीं हो सका।

2024 के चुनाव में क्या होगा?

2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम वोट बैंक ने जेडीयू को सिर्फ किशनगंज सीट पर समर्थन दिया, जबकि बाकी क्षेत्रों में जेडीयू और बीजेपी के खिलाफ खड़ा नजर आया। हाल ही में हुए चार उपचुनावों में भी मुस्लिम वोट बैंक ने पूरी तरह से जेडीयू से मुँह मोड़ लिया।

क्या जेडीयू मुस्लिम वोट बैंक को वापस पा सकेगी?

मुस्लिम वोटों के घटने से जेडीयू को काफी नुकसान हुआ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की सीटों की संख्या घटकर 47 रह गई, जो पहले बीजेपी से भी बड़ी पार्टी हुआ करती थी। अब जेडीयू को अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। इसके लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व में पार्टी के वरिष्ठ नेता मुस्लिम समुदाय को यह बताने में जुटे हैं कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं।

जेडीयू के नेता जैसे ललन सिंह, संजय झा और अशोक चौधरी यह दावा कर रहे हैं कि नीतीश कुमार ने मुस्लिम समाज के लिए जो काम किया है, वह पहले कभी नहीं हुआ। अब देखना यह है कि क्या जेडीयू एक बार फिर मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ जोड़ पाती है, या फिर मुस्लिम वोट जेडीयू से और दूर चला जाएगा।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest Articles