दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में हलचल तेज हो गई है, और इस बार कांग्रेस ने एक नया कदम उठाया है, जो कई लोगों के लिए हैरान करने वाला हो सकता है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) के खिलाफ कांग्रेस ने वही पुराना फॉर्मूला अपनाया है, जिसे एक वक्त में खुद अरविंद केजरीवाल ने 2013 में बीजेपी और कांग्रेस को मात देने के लिए इस्तेमाल किया था। कांग्रेस अब उसी फॉर्मूले के जरिए अपनी खोई हुई साख वापस पाने की कोशिश कर रही है। यह फॉर्मूला था—बड़े नेताओं के खिलाफ लोकप्रिय चेहरों को मैदान में उतारना।
केजरीवाल के दांव से मात खा गई थी कांग्रेस
2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP) को तेज़ी से स्थापित करने के लिए कुछ बेहद बड़े दांव खेले थे। उस समय, कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ अरविंद केजरीवाल खुद मैदान में उतरने का फैसला किया था। इसके साथ ही, उन्होंने अन्य महत्वपूर्ण सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बड़े नेताओं के खिलाफ लोकप्रिय चेहरों को उम्मीदवार बना दिया। यह रणनीति उनकी पार्टी के लिए बेहद कारगर साबित हुई और उन्होंने 28 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी ने 32 सीटें जीती थीं, लेकिन सरकार बनाने के लिए आवश्यक 36 सीटों तक नहीं पहुंच पाई थी।
उस वक्त, कांग्रेस को केवल 8 सीटों पर जीत हासिल हुई और उसे आम आदमी पार्टी के गठन के बाद पहले से ही अपनी कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने तब, AAP को बाहर से समर्थन दिया था, जिससे AAP की सरकार बनी, लेकिन यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल पाई। इसके बाद, 2015 और 2020 के चुनावों में अरविंद केजरीवाल ने पूर्ण बहुमत हासिल किया और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सत्ता स्थापित हुई।
अब कांग्रेस ने वही फॉर्मूला अपनाया, जो कभी केजरीवाल ने अपनाया था
2025 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वही रणनीति अपनाई है, जिससे 2013 में उसने अपनी सत्ता खो दी थी। कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं के खिलाफ अपने लोकप्रिय नेताओं को मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। पार्टी ने कई महत्वपूर्ण सीटों पर अपनी तरफ से उम्मीदवारों की घोषणा की है।
कुछ प्रमुख उम्मीदवारों में शामिल हैं:
- नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को उतारा गया है।
- पटपड़गंज सीट पर कांग्रेस ने अनिल चौधरी को टिकट दिया है, जो कि आम आदमी पार्टी के नेता अवध ओझा के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।
- बुरारी सीट पर आम आदमी पार्टी के संजीव झा के खिलाफ कांग्रेस ने मंगेश त्यागी को मैदान में उतारा है।
- ग्रेटर कैलाश सीट पर कांग्रेस ने सौरव भारद्वाज के खिलाफ गर्वित सांघवी को उम्मीदवार बनाया है।
- कालकाजी सीट पर मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ कांग्रेस ने अल्का लांबा को उतारने की योजना बनाई है, जबकि पिछली बार लांबा ने चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़ा था।
इसके अलावा, कई अन्य सीटों पर भी कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को मैदान में उतारा है, जो आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं के खिलाफ चुनावी चुनौती पेश करेंगे।
कांग्रेस के लिए दिल्ली चुनाव क्यों है ‘करो या मरो’ का सवाल?
कांग्रेस के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 इस बार ‘करो या मरो’ जैसा है। 2015 में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी, हालांकि पार्टी को करीब 9 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद 2020 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत और भी गिरकर केवल 4 प्रतिशत रह गया।
इस बार कांग्रेस की रणनीति वोट प्रतिशत बढ़ाने के साथ-साथ सीटों की संख्या में भी इज़ाफा करने की है। पार्टी की यह चिंता है कि अगर वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है, तो उसे दिल्ली में अपनी राजनीतिक स्थिति को बनाए रखने में मुश्किलें आ सकती हैं।
दिल्ली में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का समर्थन भी अब कम हो चुका है। कई प्रमुख नेता या तो बीजेपी में चले गए हैं या फिर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं, जिससे कांग्रेस को अब अपने खुद के दम पर चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
सोशल मीडिया पर कांग्रेस की नई मुहिम ‘फर्क है’
कांग्रेस ने अपने चुनावी प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर एक नई मुहिम शुरू की है, जिसका नाम है ‘फर्क है’। इस अभियान के तहत कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली के पुराने रिकॉर्ड्स को सामने लाना शुरू किया है, खासकर शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली में किए गए विकास कार्यों को लेकर। पार्टी यह भी दावा कर रही है कि अरविंद केजरीवाल के पुराने वादों को वह पूरा करने में विफल रहे हैं, और अब उन्हें जनता के बीच जवाबदेह ठहराया जाएगा।
कांग्रेस के बड़े नेताओं का प्रचार में उतरना
कांग्रेस का मानना है कि इस बार चुनावी रण में उसे अपने बड़े नेताओं की मदद की ज़रूरत है। पार्टी के बड़े नेता चुनावी प्रचार में उतरने की योजना बना रहे हैं, ताकि दिल्ली की जनता को यह संदेश दिया जा सके कि कांग्रेस पार्टी ही दिल्ली के विकास की सच्ची वारिस है। पार्टी के शीर्ष नेता शीला दीक्षित और अन्य कांग्रेस नेता इस चुनावी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।
आखिरकार, क्या कांग्रेस के इस पुराने फॉर्मूले से दिल्ली की सत्ता पर वापस होगी उसकी पकड़?
यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का यह रणनीति कितना सफल होती है और क्या वह अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को उनके उसी दांव से मात दे पाएगी, जिससे वह 2013 में सत्ता से बाहर हो गई थी। दिल्ली के अगले चुनाव कांग्रेस के लिए एक बहुत बड़ा अवसर साबित हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए पार्टी को अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा और जनसमर्थन हासिल करना होगा।