Sardar Vallabhbhai Patel Death Anniversary: अगर आज भारत एकजुट है, तो इसका सबसे बड़ा श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को जाता है। उनकी दूरदृष्टि और मजबूत नेतृत्व ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय जनमानस को जागरूक किया, बल्कि आजादी के बाद देश को एकजुट करने में भी अहम भूमिका निभाई। भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद, जहां एक ओर सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था, वहीं दूसरी ओर 562 रियासतें स्वतंत्र निर्णय लेने की स्थिति में थीं। इन रियासतों को भारत में जोड़ने की चुनौती सरदार पटेल के सामने थी, और उन्होंने इसे सफलता से पूरा किया। उनके नेतृत्व में, भारत ने अपनी अखंडता बनाए रखी, जो आज भी भारतीय राजनीति और समाज का आधार है।
अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति
ब्रिटिश साम्राज्य की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने भारत में विभाजन की आग को और बढ़ा दिया था। ब्रिटिश शासकों ने देश की आजादी के समय न केवल भारत को दो हिस्सों में बांट दिया था, बल्कि 562 रियासतों को भी यह अधिकार दे दिया था कि वे अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं। इस स्थिति ने भारत के लिए बड़ा संकट खड़ा कर दिया, क्योंकि इन रियासतों के राजा और नवाब पहले ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थे, लेकिन अब उन्हें अपनी स्वतंत्रता का निर्णय खुद लेना था।
रियासतों को भारत में मिलाने की चुनौती
आजादी के बाद इन रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने का कार्य सरदार पटेल ने संभाला। 6 मई 1947 को ही उन्होंने इन रियासतों को भारत में जोड़ने के लिए कार्य शुरू कर दिया था। गांधी जी की सलाह पर पटेल ने रियासतों के शासकों से संपर्क किया और उन्हें समझाया कि देशभक्ति के आधार पर उन्हें अपनी रियासतों को भारतीय संघ में मिलाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि भारत में शामिल होने के बाद इन शासकों को प्रिवी पर्सेज़ के रूप में आर्थिक सहायता मिलती रहेगी। पटेल ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय 15 अगस्त 1947 तक होना चाहिए, ताकि देश की एकता सुनिश्चित की जा सके।
जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर: सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि भारत को एकजुट करने के इस अभियान में कई मुश्किलें थीं। जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर जैसे अहम क्षेत्रों में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष ने सरदार पटेल के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। जूनागढ़ का नवाब महावत खान ने पाकिस्तान में शामिल होने का ऐलान किया था। वहीं, हैदराबाद के नवाब उस्मान अली खान ने भारत में विलय से इंकार कर दिया था। जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह भी फैसले में उलझे हुए थे।
सरदार पटेल की रणनीति और साहसिक कदम
इन रियासतों के साथ फैसला लेना सरदार पटेल के लिए आसान नहीं था। खासकर इन रियासतों में धर्म और संस्कृति के भेद भी थे। उदाहरण के लिए, जम्मू-कश्मीर का राजा हिंदू था, लेकिन वहां की अधिकांश जनता मुस्लिम थी। इसी तरह, जूनागढ़ और हैदराबाद में मुस्लिम नवाबों का शासन था, जबकि वहां की अधिकांश जनता हिंदू थी। इस संवेदनशील स्थिति में, किसी भी गलत कदम से सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता था। ऐसे में सरदार पटेल को अपनी रणनीति में सावधानी बरतनी पड़ी।
पाकिस्तान के हमले के बाद जम्मू-कश्मीर का विलय
पाकिस्तान ने जूनागढ़ और हैदराबाद को अपने पक्ष में करने के लिए कड़ी कोशिश की। 16 सितंबर 1947 को पाकिस्तान ने जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा कर दी। लेकिन जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर कबायली हमला किया, तो यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर बन गया। कश्मीर पर हमला करने के बाद, जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने 25 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ अपने राज्य का विलय करने का निर्णय लिया। इस फैसले में कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला की सहमति भी थी, जिससे यह निर्णय और भी मजबूत हो गया।
हैदराबाद पर भारतीय सेना का ऑपरेशन पोलो
हैदराबाद में नवाब उस्मान अली खान ने भारत में विलय से इंकार किया और कासिम रिजवी नामक व्यक्ति ने हैदराबाद में हिंसा फैलानी शुरू कर दी। सरदार पटेल ने इस स्थिति को गंभीरता से लिया और 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना को ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद में कार्रवाई करने का आदेश दिया। महज दो दिन में भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारतीय संघ में शामिल कर लिया और इस तरह से यह रियासत भी भारत का हिस्सा बन गई।
जूनागढ़ का विलय: एक और कड़ा कदम
जूनागढ़ के मामले में, सरदार पटेल ने पाकिस्तान से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद, पटेल ने जूनागढ़ को पूरी तरह से नाकेबंदी कर दी। उन्होंने तेल, कोयले की आपूर्ति रोक दी, हवाई और डाक संपर्क तोड़ दिया और आर्थिक दबाव बनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि वहां की जनता विद्रोह पर उतर आई और भारतीय सेना ने जूनागढ़ पर कब्जा कर लिया। 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भी भारतीय संघ में शामिल हो गया।
सरदार पटेल का निधन और उनकी विरासत
भारत को एकजुट करने के लिए सरदार पटेल का संघर्ष ऐतिहासिक था। लेकिन इस यात्रा के दौरान उनका स्वास्थ्य लगातार कमजोर होता गया। 15 दिसंबर 1950 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा। चार घंटे बाद थोड़ी देर के लिए होश आया, लेकिन शाम 9:37 बजे उन्होंने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा ले लिया। उनका योगदान भारत की एकता के लिए अतुलनीय था और उनका यह संघर्ष आज भी भारतीय राजनीति और समाज को प्रेरित करता है।
आज, सरदार पटेल की धरोहर के कारण भारत एक मजबूत और अखंड राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने खड़ा है, और उनकी नीतियां और फैसले हमेशा एक प्रेरणा बने रहेंगे।