अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु कार्यक्रम का श्रेय नरसिम्हा राव को क्यों दिया? जानिए पूरी कहानी

Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया और दुनिया को अपनी शक्ति दिखाई, तो यह एक ऐतिहासिक पल था। इस परीक्षण का श्रेय बहुत लोग अटल बिहारी वाजपेयी को देते हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने हमेशा यह कहा कि इसका असली श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को जाता है। यह कदम भारत की सुरक्षा के लिए बहुत अहम था, लेकिन इस कहानी को समझने के लिए हमें उस समय के घटनाक्रम को अच्छे से जानना होगा।

क्या था राव और अटल के बीच संवाद?

नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक खास बातचीत हुई थी। राव ने अटल से कहा था, “सामग्री तैयार है। आप अगला कदम उठा सकते हैं।” इसका मतलब था कि राव सरकार ने पहले से ही इस परमाणु कार्यक्रम की तैयारी कर दी थी, और अटल बिहारी जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने उस तैयारी को आखिरी रूप दिया और परीक्षण को साकार किया। नरसिम्हा राव ने इस कार्यक्रम के लिए बुनियादी कदम पहले ही उठा दिए थे, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में अंतिम रूप दिया।

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अटल बिहारी का ऐतिहासिक निर्णय

जब अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनते ही परमाणु परीक्षण को हरी झंडी दी, तो यह एक ऐतिहासिक फैसला था। यह भारत की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, और दुनिया को यह संदेश देने का एक तरीका था कि भारत अब एक मजबूत परमाणु शक्ति है। हालांकि, इस कदम को उठाने की शुरुआत नरसिम्हा राव की सरकार से हुई थी, जब राव ने इस दिशा में पहला कदम रखा था। जब अटल प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने इस योजना को आगे बढ़ाया।

कश्मीर मुद्दे पर अटल और नरसिम्हा राव का सहयोग

अटल बिहारी वाजपेयी और नरसिम्हा राव के बीच सिर्फ परमाणु परीक्षण तक ही नहीं, बल्कि कई और मामलों में सहयोग था। एक बार जब कश्मीर के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखना था, तो नरसिम्हा राव ने अटल बिहारी को विपक्षी नेता होने के बावजूद यह जिम्मेदारी दी। यह दिखाता है कि दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक मतभेदों के बावजूद एक गहरी समझ और सम्मान था।

राव के प्रधानमंत्री रहते परमाणु कार्यक्रम में हुई प्रगति

नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान भारत के परमाणु कार्यक्रम में काफी प्रगति हुई। 1989 में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों ने सरकार से परमाणु परीक्षण की अनुमति मांगी थी, और राव ने इस दिशा में कदम बढ़ाए थे। जब अटल बिहारी वाजपेयी 1998 में प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने इस काम को साकार किया और परमाणु परीक्षण किया।

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कलाम की आंखों में आंसू थे, जब वाजपेयी ने किया परमाणु परीक्षण

1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण किया, तो उस दौरान ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी इस मिशन का हिस्सा थे। कलाम साहब को जब इस परीक्षण के बारे में बताया गया, तो उनकी आंखों में आंसू थे, क्योंकि यह उनके जीवन का एक अहम और भावनात्मक पल था। हालांकि, 1996 में जब अटल की सरकार महज 13 दिनों तक चली थी, तब कलाम साहब ने कहा था कि अगर वाजपेयी कुछ हफ्तों तक सत्ता में रहते, तो यह परीक्षण हो सकता था।

वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिरी थी

1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 दिनों तक ही चली थी, क्योंकि विश्वास मत में वह केवल एक वोट से हार गए थे। लेकिन जब वे 1998 में फिर से प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने परमाणु परीक्षण का काम पूरा किया। इस बार उनकी सरकार मजबूत थी, और उन्होंने बिना किसी दबाव के यह ऐतिहासिक परीक्षण कराया।

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नरसिम्हा राव का दृढ़ निश्चय और अटल का साहसिक कदम

नरसिम्हा राव ने अपने प्रधानमंत्री बनने के दौरान परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से तैयार किया था, और अटल बिहारी वाजपेयी ने उसे साकार किया। राव ने अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज करते हुए भारत के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। जब अटल सत्ता में आए, तो उन्होंने बिना किसी डर के इस योजना को पूरा किया। यह कदम सिर्फ भारत की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व में भारत की स्थिति को मजबूत करने वाला था।

अटल और राव का अनोखा संबंध

अटल बिहारी वाजपेयी और नरसिम्हा राव के रिश्ते सिर्फ राजनीतिक नहीं थे, बल्कि ये एक-दूसरे के प्रति गहरे सम्मान और विश्वास पर आधारित थे। दोनों ने हमेशा एक-दूसरे के योगदान को स्वीकार किया, और यह साझेदारी भारतीय राजनीति के लिए बहुत अहम साबित हुई। राव ने पहले परमाणु कार्यक्रम की दिशा तय की, और अटल ने उसे पूरा किया।

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