प्रयागराज में कहां है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप से हुआ था समुद्र मंथन?

प्रयागराज, जिसे यज्ञ और तप की भूमि कहा जाता है, वैदिक और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां के संगम तट पर, जहां त्रिवेणी संगम यानी गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों का मिलन होता है, युगों से देवताओं और ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है। इन ऋषियों में एक महत्वपूर्ण नाम महर्षि दुर्वासा का भी आता है। जिनकी तपस्या और क्रोध की कई रोचक कथाएं पौराणिक ग्रंथों में मिलती हैं।
महर्षि दुर्वासा का नाम सुनते ही सबसे पहले उनके क्रोध और श्राप का ख्याल आता है। मगर क्या आप जानते हैं कि महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में स्थित है? यह आश्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पौराणिक महत्व के कारण भी खास है।

समुद्र मंथन और महर्षि दुर्वासा का श्राप

महर्षि दुर्वासा के बारे में एक प्रसिद्ध कथा है जो समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। पुराणों के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र हाथी पर बैठकर भ्रमण कर रहे थे। इस दौरान महर्षि दुर्वासा ने उन्हें आशीर्वाद के रूप में एक फूलों की माला दी। इंद्र ने माला को अपने हाथी के गले में डाल दी, लेकिन हाथी ने माला को पैरों तले कुचल दिया। इस पर महर्षि दुर्वासा को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने इंद्र और सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया।
महर्षि दुर्वासा के श्राप के बाद देवता विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी, ताकि वे फिर से अमृत प्राप्त कर सकें और अपनी खोई हुई शक्ति को वापस पा सकें। इस श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करना पड़ा, और तभी अमृत की प्राप्ति हुई। यह घटना न केवल पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके बाद ही महाकुंभ का आयोजन भी होता है।

शिवलिंग की स्थापना और महर्षि दुर्वासा की तपस्या

महर्षि दुर्वासा के बारे में एक और महत्वपूर्ण घटना जुड़ी हुई है, जब उन्होंने प्रयागराज में शिव जी की तपस्या की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा ने एक बार अपने क्रोध के कारण इक्षवाकु वंशीय राजा अंबरीष को गलत श्राप दे दिया था। इसके बाद, भगवान विष्णु ने उन्हें अभयदान देने के लिए प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करने की सलाह दी थी।
महर्षि दुर्वासा ने यहां गंगा के किनारे भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित किया और उनकी पूजा की। पूजा के बाद उन्हें अभयदान मिला। इस स्थल को लेकर मान्यता है कि यहां शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों को अभयदान मिलता है और वे सभी प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाते हैं।

महर्षि दुर्वासा का आश्रम: कहां स्थित है?

प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव के पास महर्षि दुर्वासा का आश्रम स्थित है। यह आश्रम गंगा के किनारे है, और यहां एक प्राचीन शिव मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वयं महर्षि दुर्वासा ने शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मंदिर के गर्भगृह में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है, जो उनकी साधना की अवस्था को दर्शाती है।
मंदिर के परिसर में अन्य कई पौराणिक देवताओं की मूर्तियां भी हैं, जैसे अत्रि ऋषि, माता अनसूईया, भगवान दत्तात्रेय, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा। इन सबकी मूर्तियां मंदिर में श्रद्धा भाव से स्थापित हैं। इस मंदिर का एक विशेष महत्व है, क्योंकि यहां आने से भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि महर्षि दुर्वासा के आशीर्वाद से वे अभयदान भी प्राप्त करते हैं।

महर्षि दुर्वासा के आश्रम में पूजा और मेला

महर्षि दुर्वासा के आश्रम में हर साल दो विशेष अवसरों पर विशेष पूजा होती है। एक है सावन माह में, जब यहां बड़े धूमधाम से मेला लगता है, और दूसरा है मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जयंती, जो महर्षि दुर्वासा के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भक्तों की भारी भीड़ आश्रम में इकट्ठा होती है, जहां वे पूजा-अर्चना करते हैं और महर्षि की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं।

पर्यटन विभाग का जीर्णोद्धार

महाकुंभ 2025 के आगामी आयोजन की तैयारी के तहत, उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज के मंदिरों और गंगा घाटों का जीर्णोद्धार करवाने का कार्य किया है। इसी के तहत महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार किया गया है। अब इस मंदिर का प्रवेश मार्ग और भी सुंदर और विशाल बना दिया गया है। यहां तीन बड़े द्वार बनाए गए हैं, और मंदिर के इंटीरियर्स को भी खूबसूरती से सजाया जा रहा है।
महाकुंभ के दौरान, संगम स्नान करने आने वाले श्रद्धालु महर्षि दुर्वासा के आश्रम और शिवलिंग की पूजा करने जरूर जाते हैं, ताकि उन्हें अभयदान मिले और वे धार्मिक लाभ प्राप्त कर सकें।
प्रयागराज का महर्षि दुर्वासा आश्रम न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसका पौराणिक महत्व भी अत्यधिक है। यहां की महिमा और कथा, विशेष रूप से समुद्र मंथन से जुड़ी घटनाएं, इसे एक खास स्थान देती हैं। साथ ही, महर्षि दुर्वासा की तपस्या और शिवलिंग की स्थापना से जुड़ी घटनाएं भी इस स्थान को और भी पवित्र बनाती हैं। अगर आप भी पुण्य की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, तो इस आश्रम की यात्रा आपके लिए एक विशेष अनुभव हो सकती है।

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