भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का हाल ही में निधन हो गया। उनका योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व था, और उन्होंने जिस तरह से देश की मुश्किल आर्थिक स्थिति को संभाला, वह सिर्फ एक अर्थशास्त्री ही कर सकता था। उनके निधन ने पूरे देश को शोक में डूबो दिया है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि 2014 में डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह क्यों कहा था कि ‘इतिहास शायद मेरे साथ न्याय करेगा’? आइए जानते हैं उस समय की परिस्थितियों और उनके इस बयान के पीछे की पूरी कहानी।
2014 में मनमोहन सिंह का ऐतिहासिक बयान
2014 के आम चुनावों से ठीक पहले, डॉ. मनमोहन सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। यह उनका दूसरा प्रधानमंत्री कार्यकाल था, और तब देश में कई गंभीर समस्याएं चल रही थीं। महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया था, और भ्रष्टाचार के मामलों ने सरकार की प्रतिष्ठा को भी बुरी तरह प्रभावित किया था। टेलीकॉम घोटाला, कोयला घोटाला और अन्य विवादों ने मनमोहन सिंह की सरकार को चारों ओर से घेर लिया था। ऐसे में विपक्ष के हमले और मीडिया की आलोचनाओं के बीच डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने ऊपर हो रहे हमलों का शांतिपूर्वक सामना किया।
2014 की प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. मनमोहन सिंह ने अंग्रेजी में कहा, “मैं ईमानदारी से मानता हूं कि मीडिया या फिर संसद में विपक्ष मेरे बारे में जो भी कहे, मुझे विश्वास है कि इतिहास मेरे साथ न्याय करेगा।” इस बयान का मतलब था कि भले ही आज उनकी आलोचना की जा रही हो, लेकिन भविष्य में उनके कामों की सही सराहना होगी। उन्होंने आगे कहा, “मैं भारत सरकार के कैबिनेट में होने वाली सभी चीजों का खुलासा तो नहीं कर सकता, लेकिन मुझे लगता है कि परिस्थितियों और गठबंधन राजनीति की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए मैंने जितना हो सकता था, उतना अच्छा किया है।”
यह बयान डॉ. सिंह के आत्मविश्वास और उनके विचारशील नेतृत्व को दर्शाता है। वे जानते थे कि उनके कार्यकाल के दौरान भारत को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने हमेशा ईमानदारी से अपना काम किया और अपना कर्तव्य निभाया। उन्होंने यह भी माना कि कई फैसलों को लागू करने में गठबंधन राजनीति और अन्य राजनीतिक दबावों का असर था।
मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनने से पहले का करियर
डॉ. मनमोहन सिंह का करियर सिर्फ प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी महत्वपूर्ण रहा। वह 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने, और इसके बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने रिजर्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, तब डॉ. सिंह ने देश के वित्त मंत्री के तौर पर अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
1991 में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण की दिशा में मोड़ा था। उनका मानना था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना जरूरी है। उन्होंने आर्थिक सुधारों का रुख बदलते हुए विदेशी निवेश को आकर्षित किया और देश की अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस कदम ने भारत को एक नई दिशा दी और वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत को एक मजबूत स्थान दिलाया।
डॉ. मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल और आलोचनाएं
मनमोहन सिंह ने 2009 में अपनी दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनके इस कार्यकाल में देश ने कई महत्वपूर्ण विकास कार्य किए, लेकिन इस दौरान उन्हें कई तरह की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। महंगाई ने आम आदमी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं, और साथ ही भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले सामने आए थे। इन कारणों से डॉ. सिंह की छवि भी प्रभावित हुई।
टेलीकॉम घोटाला, कोयला घोटाला और भ्रष्टाचार के कई अन्य मामलों ने उनके सरकार को बुरी तरह घेर लिया था। हालांकि, डॉ. सिंह ने हमेशा शांतिपूर्वक इन आलोचनाओं का सामना किया। उनका मानना था कि कई फैसले एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और गठबंधन सरकार के तहत ही लिए जा सकते थे, और वे अपनी नीतियों में पूरी ईमानदारी से कार्य करते रहे।
2014 में जब उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला, तब देश के कई हिस्सों में उन्हें नकारात्मक रूप से देखा जा रहा था। लेकिन डॉ. सिंह ने मीडिया और विपक्ष से यह कहा था कि इतिहास उनकी नीतियों और योगदान को सही रूप में देखेगा। और शायद यह उनके आत्मविश्वास का हिस्सा था कि वे जानते थे कि उनकी असल उपलब्धियां समय के साथ सामने आएंगी।
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान और विरासत
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा। उनके नेतृत्व में भारत ने न केवल आर्थिक सुधारों की दिशा में प्रगति की, बल्कि एक मजबूत वैश्विक खिलाड़ी बनने की ओर भी कदम बढ़ाए। उनका शांतिपूर्ण और सटीक नेतृत्व अब भारतीय राजनीति में एक आदर्श बन गया है।
उनके निधन के बाद देशभर में श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है, और उनकी कार्यशैली को याद किया जा रहा है। डॉ. मनमोहन सिंह का कहना था, “इतिहास मेरे साथ न्याय करेगा,” यह शब्द अब सच साबित हो रहे हैं, क्योंकि उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
डॉ. मनमोहन सिंह का निधन गुरुवार को हुआ। वह तबियत बिगड़ने के बाद दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती हुए थे, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। आज सुबह उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। उनके परिवार और शुभचिंतकों का कहना है कि डॉ. सिंह के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा, और उनके द्वारा किए गए सुधारों के कारण भारत की स्थिति आज एक बेहतर स्थान पर है।