अयोध्या में श्रीराम के भव्य मंदिर के उद्घाटन की पहली वर्षगांठ 11 जनवरी से मनाई जा रही है, और यह उत्सव 13 जनवरी तक चलेगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत से हजारों किलोमीटर दूर एक ऐसा शहर है, जहां के राजा अपने नाम में ‘राम’ जोड़ते हैं? यह शहर है थाइलैंड का अयुथ्या, जो कि भारत के अयोध्या से लगभग 3500 किलोमीटर दूर स्थित है। इस शहर का इतिहास 675 साल पुराना है, और इसका भारतीय संस्कृति और रामायण से गहरा संबंध है।
अयोध्या और अयुथ्या का इतिहास
अयुथ्या नाम का यह शहर थाइलैंड में स्थित है, और यह एक समय में थाइलैंड का एक प्रमुख साम्राज्य था। थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित अयुथ्या शहर को कभी एक समृद्ध और शक्तिशाली साम्राज्य की राजधानी माना जाता था। हालांकि, 1767 में बर्मा (अब म्यांमार) द्वारा किए गए हमले के बाद यह शहर पूरी तरह से तबाह हो गया था। इसके बाद थाइलैंड के शासकों ने इसे फिर से बसाने की कोशिश नहीं की और बैंकॉक को नई राजधानी बना लिया।
अयुथ्या शहर का नाम भारत के अयोध्या के नाम से मिलता-जुलता है, और इसका कारण संस्कृत शब्दों का थाई भाषा में रूपांतरण माना जाता है। इसे भी भारत के अयोध्या जैसा एक शुभ स्थान माना गया था, और यहां के शासकों ने इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया था।
रामायण का प्रभाव
थाइलैंड में रामायण का गहरा प्रभाव है, जिसे थाई भाषा में ‘रामाकिएन’ कहा जाता है। थाइलैंड के लोग इस महाकाव्य को बेहद आदर और श्रद्धा से पढ़ते और मानते हैं। थाइलैंड के राजा भी अपने नाम में ‘राम’ जोड़ते हैं, और यह परंपरा यूरोपियन कल्चर से प्रभावित मानी जाती है। दरअसल, चक्री राजवंश के छठे राजा वजिरावुध ने इंग्लैंड में पढ़ाई की थी और वहां के शासकों को अपने नाम में अंक जोड़ते हुए देखा था, जिसके बाद उन्होंने भी अपने नाम में ‘राम’ जोड़ने की परंपरा शुरू की।
थाइलैंड के राजा राम दशम
वर्तमान में थाइलैंड के राजा की उपाधि राम दशम है, जिन्हें ‘फुटबॉल प्रिंस’ के नाम से भी जाना जाता है। राम दशम साइक्लिंग से जुड़े आयोजनों के लिए भी प्रसिद्ध हैं और उनके निधन के बाद 2019 में उनका राज्याभिषेक हुआ था। 2020 में उनकी संपत्ति 43 अरब डॉलर के आसपास मानी गई, जिससे वह दुनिया के सबसे अमीर शासक के रूप में पहचाने गए थे।
अयुथ्या का धार्मिक महत्व
अयुथ्या शहर में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मंदिरों का भी निर्माण किया गया था, जो भारतीय संस्कृति और धर्म के गहरे प्रभाव को दर्शाते हैं। थाइलैंड के अयुथ्या शहर में इन मंदिरों के खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं, जो उस समय की शाही और धार्मिक समृद्धि को बयां करते हैं। यहां स्थित विशाल मंदिरों और खंडहरों से उस समय के वैभव और शांति की झलक मिलती है।
भारत के अयोध्या और थाइलैंड के अयुथ्या शहर में समानताएं केवल नाम तक ही सीमित नहीं हैं। दोनों स्थानों के धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक संबंध भी गहरे हैं। भारत के अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि मानी जाती है, जबकि थाइलैंड के अयुथ्या शहर में भी रामायण की गहरी छाप है और राम के आदर्शों को लोग अपनी जीवनशैली का हिस्सा मानते हैं।
अयुथ्या का साम्राज्य
अयुथ्या शहर को कभी थाइलैंड के सबसे बड़े और समृद्ध साम्राज्य की राजधानी माना जाता था। यह शहर व्यापार, कला, संस्कृति और धर्म का एक बड़ा केंद्र था। थाइलैंड की संस्कृति पर अयोध्या का प्रभाव साफ तौर पर दिखता है, क्योंकि यहां के शासकों ने भारतीय परंपराओं को अपनाया और अपनी राजधानी को भी एक धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित किया। अयुथ्या शहर तीन प्रमुख नदियों से घिरा हुआ था, जो इसे प्राकृतिक दृष्टि से भी एक आकर्षक और महत्वपूर्ण स्थान बनाती थी।
अयुथ्या का पतन और बैंकॉक का उभरना
हालांकि अयुथ्या का साम्राज्य 1767 में बर्मा के हमले के बाद नष्ट हो गया, लेकिन आज भी यह शहर थाइलैंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अयुथ्या के खंडहर आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इसके बाद थाइलैंड के शासकों ने राजधानी को बैंकॉक स्थानांतरित कर दिया, जो आज थाइलैंड का राजनीतिक और आर्थिक केंद्र है।
भारत और थाइलैंड का सांस्कृतिक संबंध
अयोध्या और अयुथ्या के नाम का मेल केवल एक संयोग नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों के सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों की गहरी जड़ें दर्शाता है। रामायण का प्रभाव थाइलैंड में भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है, और इस वजह से अयुथ्या को भी भारतीय अयोध्या जैसा शुभ माना जाता है। दोनों ही स्थानों का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आज भी भारत और थाइलैंड के बीच सांस्कृतिक संबंध मजबूत हैं और दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में भाग लेते हैं। अयोध्या और अयुथ्या के बीच यह सांस्कृतिक जुड़ाव दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति का प्रभाव सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया के अन्य देशों में भी गहराई से फैला हुआ है।